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योग तप (आगम अध्ययन) की शास्त्रीय विधि ...347
बारहवें दिन योगवाही अन्तकृतदशांगसूत्र की अनुज्ञा करें तथा एक कालग्रहण लें, नंदी क्रिया और आयंबिल तप करें। इसकी विधि में पूर्ववत सभी क्रियाएँ एक-एक बार करें।
इस प्रकार अन्तकृतदशांगसूत्र के योग में कुल बारह दिन और तीन नंदी होती हैं। श्री अंतकृतदशासूत्र-श्रुतस्कन्ध-1, आगाढ़ योग, दिन-12, काल-12,
नंदी-3 अंग-8, वर्ग-8 . दिन | 1 | 2 | 3 | 4 | 5 वर्ग अं.उ.,नंदी, 2 | 3 | 4 | 5 |
श्रु.उ. वर्ग-1 अध्ययन | | आ.5/अं.5 आ.4/अं.4 आ.7/अं.6 आ.5/अं.5/ आ.5/अं.5| आ.8/अं.8|आ.7/अं.6| कायोत्सर्ग 11 | 9 | 9 | 9 | 9 | 9 | 9 तप ___ आ. | नी. | नी. | नी. | नी. | नी. | नी.
|दिन | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 वर्ग | 8 | श्रु.समु. श्रु.अनु.नंदी| अं.समु. अं.अनु.नंदी अध्ययन | आ.5/अं.5| 0 | 0 | 0 | 0 कायोत्सर्ग 9 | 1 | 1 | 1 | 1 तप । नी. | आ. | आ. | आ. | आ. • आचारदिनकर के अनुसार तप क्रम दशवैकालिक सूत्र के यन्त्रवत समझें। अनुत्तरोपपातिकदशासूत्र योग विधि
• यह नौवां अंग सूत्र है। इसमें एक श्रुतस्कन्ध और तीन वर्ग हैं। पहले वर्ग में दस, दूसरे वर्ग में तेरह एवं तीसरे वर्ग में दस अध्ययन हैं। इस प्रकार तीन वर्गों में कुल 33 अध्ययन हैं। तीन वर्गों में तीन दिन एवं नौवें अंगसूत्र के समुद्देश आदि में चार दिन- इस तरह इस सूत्र के योग सात दिन में पूर्ण होते हैं।
अनुत्तरोपपातिकदशासूत्र की योगोद्वहन विधि निम्न है
पहले दिन योगवाही अनुत्तरोपपातिकदशा, उसका श्रुतस्कन्ध एवं उसके प्रथम वर्ग के उद्देश की क्रिया करें, फिर प्रथम वर्ग के आदि के पाँच एवं अन्त के पाँच-ऐसे दस अध्ययनों की क्रिया करें, फिर पाँच-पाँच के विभाग पूर्वक इन