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________________ 346... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण • आठ वर्गों में आठ दिन और आठवें अंगसूत्र के समुद्देश आदि में तीन दिन। इस प्रकार इस सूत्र के योग बारह दिन में पूर्ण होते हैं। • इस सूत्र के योग ज्ञाताधर्मकथा के समान वहन किए जाते हैं। अन्तकृतदशासूत्र की योगोद्वहन विधि निम्न है— पहले दिन योगवाही अन्तकृतदशा, उसके श्रुतस्कन्ध एवं उसके प्रथम वर्ग के उद्देश की क्रिया करें। उसके बाद प्रथम वर्ग के आदि के पाँच एवं अन्त के पाँच- ऐसे दस अध्ययनों के उद्देश की क्रिया करें। तत्पश्चात आदि के पाँच एवं अंत के पाँच - ऐसे दस अध्ययनों के समुद्देश की क्रिया करें, फिर प्रथम वर्ग का समुद्देश करें। फिर आदि के पाँच एवं अन्त के पाँच और प्रथम वर्ग की अनुज्ञा की क्रिया करें। इस दिन एक काल का ग्रहण करें, नंदी क्रिया और आयंबिल तप करें। इसकी विधि में पूर्ववत सभी क्रियाएँ ग्यारह - ग्यारह बार करें। दूसरे दिन योगवाही द्वितीय वर्ग और उसके आदि के चार एवं अन्त के चार - ऐसे आठ अध्ययनों के उद्देश की क्रिया करें, फिर आदि के चार एवं अन्त के चार-ऐसे आठ अध्ययनों के समुद्देश की क्रिया करें, फिर द्वितीय वर्ग का समुद्देश करें, फिर आदि के चार एवं अन्त के चार- ऐसे आठ अध्ययनों और द्वितीय वर्ग की अनुज्ञा की क्रिया करें। इस दिन एक कालग्रहण लें और नीवि तप करें। इसकी विधि में पूर्ववत सभी क्रियाएँ नौ-नौ बार करें। तीसरे दिन से लेकर आठवें दिन तक योगवाही क्रमश: तृतीय वर्ग से लेकर आठ वर्गों एवं उनके अध्ययनों को दो भागों में विभक्त कर उनके उद्देशसमुद्देश- अनुज्ञा की क्रिया करें। प्रतिदिन एक- एक कालग्रहण लें और नीवि तप करें। इसकी विधि में पूर्ववत सभी क्रियाएँ नौ-नौ बार करें। नौवें दिन योगवाही अन्तकृतदशा के श्रुतस्कन्ध के समुद्देश की क्रिया करें तथा एक कालग्रहण लें और आयंबिल तप करें। इसकी विधि में पूर्ववत सभी क्रियाएँ एक-एक बार करें। दसवें दिन योगवाही अन्तकृतदशा के श्रुतस्कन्ध की. अनुज्ञा करें तथा एक कालग्रहण लें, नंदी क्रिया और आयंबिल तप करें। इसकी विधि में पूर्ववत सभी क्रियाएँ एक-एक बार करें। ग्यारहवें दिन योगवाही अन्तकृतदशा के समुद्देश की क्रिया करें तथा एक कालग्रहण लें और आयंबिल तप करें। इसकी विधि में पूर्ववत सभी क्रियाएँ एक-एक बार करें।
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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