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योग तप (आगम अध्ययन) की शास्त्रीय विधि... 345
बारहवें दिन योगवाही श्रुतस्कन्ध की अनुज्ञा करें, एक कालग्रहण लें, नंदी क्रिया करें और आयंबिल तप करें। सभी क्रियाएँ एक-एक बार करें।
तेरहवें दिन योगवाही उपासकदशासूत्र के समुद्देश की क्रिया करें। इस दिन एक कालग्रहण लें और आयंबिल तप करें। इसकी विधि में पूर्ववत सभी क्रियाएँ एक-एक बार करें।
चौदहवें दिन योगवाही उपासकदशासूत्र की अनुज्ञा करें। इसके निमित्त एक कालग्रहण लें, नंदी क्रिया और आयंबिल तप करें। इसकी विधि में पूर्ववत सभी क्रियाएँ एक-एक बार करें।
इस प्रकार उपासकदशांग के योग में कुल चौदह दिन और तीन बार नंदी क्रिया होती है।
श्री उपासकदशा- श्रुतस्कन्ध- 1, अनागाढ़ योग, दिन- 14, काल - 14, नंदी - 3, अंग - 7, अध्ययन - 10
दिन
1
अध्ययन अं.उ.,नंदी
कायोत्सर्ग
तप
दिन
अध्ययन
कायोत्सर्ग
तप
श्रु.उ.,अ.1
5 5
आ.
0000
8
8
3
नी.
F
22
3
नी.
66
9
9
3
नी.
F
33
3
3
नी. नी.
10
10
44
3
नी.
11
श्रु. समु.
1
आ.
5 5
3
नी.
66
आ.
3
नी.
~~
1
आ.
7
7
3
नी.
12
13
14
श्रु. अनु. अं.समु. अं. अनु.
नंदी
नंदी
1
आ.
F
• आचारदिनकर के अनुसार तप क्रम दशवैकालिक सूत्र के यन्त्रवत समझें।
अन्तकृतदशासूत्र योग विधि
• यह आठवाँ अंग सूत्र है। इस सूत्र में एक श्रुतस्कन्ध है और आठ वर्ग हैं। प्रथम वर्ग में दस, द्वितीय वर्ग में आठ, तृतीय वर्ग में तेरह, चतुर्थ-पंचम वर्ग में दस-दस, षष्ठम वर्ग में सोलह, सप्तम वर्ग में तेरह और अष्टम वर्ग में दस अध्ययन हैं। इन आठ वर्गों में कुल 80 अध्ययन हैं।