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योग तप (आगम अध्ययन) की शास्त्रीय विधि ...343 प्रतिलेखना, दस बार द्वादशावर्त वंदन, दस बार खमासमणसूत्र पूर्वक वंदन एवं दस बार कायोत्सर्ग करें।
दूसरे दिन योगवाही सबसे पहले द्वितीय वर्ग, फिर उसके आदि के पाँच एवं अन्त के पाँच-ऐसे दस अध्ययनों के उद्देश की क्रिया करें। पुन: आदि के पाँच एवं अन्त के पाँच- ऐसे दस अध्ययनों के समुद्देश की क्रिया करें। फिर द्वितीय वर्ग का समुद्देश करें। फिर आदि के पाँच एवं अन्त के पाँच और द्वितीय वर्ग की अनुज्ञा विधि करें। इस दिन एक कालग्रहण लें और नीवि तप करें। इसकी विधि में पूर्ववत सभी क्रियाएँ नौ-नौ बार करें।
तीसरे दिन से लेकर दसवें दिन तक योगवाही क्रमश: तृतीय से दस वर्ग एवं उनके अध्ययनों को दो-दो भागों में विभक्त कर उनके उद्देश-समुद्देश एवं अनुज्ञा की विधि द्वितीय वर्ग की भाँति पूर्ण करें। प्रतिदिन एक-एक कालग्रहण लें और नीवि तप करें। इसकी क्रियाविधि में पूर्ववत सभी क्रियाएँ नौ-नौ बार करें।
ग्यारहवें दिन योगवाही ज्ञाताधर्मकथा के द्वितीय श्रुतस्कन्ध के समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करें। इस दिन एक कालग्रहण लें, नंदी क्रिया और आयंबिल तप करें। इसकी विधि में पूर्ववत सभी क्रियाएँ दो-दो बार करें।
बारहवें दिन योगवाही ज्ञाताधर्मकथासूत्र के समुद्देश की क्रिया करें। एक कालग्रहण लें और आयंबिल तप करें। इसकी क्रियाविधि में पूर्ववत सभी क्रियाएँ एक-एक बार करें।
तेरहवें दिन योगवाही ज्ञाताधर्मकथासूत्र की अनुज्ञा की क्रिया करें। एक कालग्रहण लें, नंदी क्रिया और आयंबिल तप करें। इसकी विधि में पूर्ववत सभी क्रियाएँ एक-एक बार करें।
इस प्रकार ज्ञाताधर्मकथा के दोनों श्रुतस्कन्धों के योग में कुल तैंतीस दिन एवं पाँच नंदी होती है। | श्री ज्ञाताधर्मकथा-द्वितीय श्रुतस्कन्ध, दिन-13, काल-13, नंदी-3 वर्ग-10
दिन
|
2
3
| नंदी, 1
अध्ययन आ.5/अं.5 आ.5/अं.5 | आ.27/अं.27 आ.27/अं.27 | आ.16/अं.16 आ.16/अं.16 कायोत्सर्ग| 10 | 9 | 9 तप | आ. | नी. | नी. | नी. नी. | नी.