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________________ 342... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण श्री ज्ञाताधर्मकथा प्रथम श्रुतस्कन्ध-अनागाढ़योग, दिन-20, काल-20, नंदी-2, अंग-6, अध्ययन-19 दिन | 1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 अध्ययन | अं.उ.,नंदी | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 श्रु.उ.,अ.1 कायोत्सर्ग 5 | 3 | 3 | 3 | 3 | 3 | 3 | 3 | 3 | 3 तप __ आ. 17 | अध्ययन | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 श्रु.समु. दिन कायोत्सर्ग 3 | 3 | 3 | 3 | 3 | 3 | 3 | 3 | 3 | 2 तप । नी. नी. | नी. | नी. | नी. | नी. | नी. | नी. | नी. | आ.. • आचारदिनकर के अनुसार तप क्रम दशवैकालिकसूत्र के यन्त्रवत समझें। द्वितीय श्रुतस्कन्ध . छठे अंगसूत्र के द्वितीय श्रुतस्कन्ध का नाम धर्मकथा है। इस श्रुतस्कन्ध के दस वर्ग हैं। प्रथम-द्वितीय वर्ग में दस-दस, तृतीय-चतुर्थ वर्ग में चौपनचौपन, पंचम-षष्ठम वर्ग में बत्तीस-बत्तीस, सप्तम-अष्टम वर्ग में चार-चार और नवम-दशम वर्ग में आठ-आठ अध्ययन हैं। इस प्रकार दस वर्ग में कुल एक सौ आठ अध्ययन हैं। . प्रत्येक वर्ग के अध्ययन आदि और अन्त ऐसे दो भागों में विभक्त कर पूर्ण किए जाते हैं। इस प्रकार दस वर्ग में दस दिन तथा अंग सूत्र और श्रुतस्कन्ध के समुद्देश एवं अनुज्ञा में तीन दिन। इस तरह द्वितीय श्रुतस्कन्ध के योग में तेरह दिन लगते हैं। धर्मकथा नामक द्वितीय श्रुतस्कन्ध की योगविधि यह है पहले दिन योगवाही धर्मकथा नामक द्वितीय श्रुतस्कन्ध और उसके प्रथम वर्ग का उद्देश करें, फिर प्रथम वर्ग के आदि के पाँच एवं अन्तिम के पाँच-ऐसे दस अध्ययनों के उद्देश की क्रिया करें। तत्पश्चात पुन: प्रथम वर्ग के आदि के पाँच एवं अन्तिम के पाँच-ऐसे दस अध्ययनों के समुद्देश की क्रिया करें। उसके बाद प्रथम वर्ग का समुद्देश करें, फिर आदि के पाँच एवं अन्त के पाँच और प्रथम वर्ग की अनुज्ञा की क्रिया करें। इस दिन एक कालग्रहण लें, नंदी क्रिया और आयंबिल तप करें। इसकी क्रियाविधि में दस बार मुखवस्त्रिका की
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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