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334... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण
के नाम हैं- 1. नंदी 2. अनुयोग 3. देवेन्द्रस्तव 4. तन्दुलवैतालिक 5. चन्द्रवेध्यक 6. गणिविद्या 7. मरण समाधि 8. ध्यान विभक्ति 9. आतुरप्रत्याख्यान और 10. महाप्रत्याख्यान।
• गोशालक शतक की अनुज्ञा तक उनचास दिन और उनचास कालग्रहण पूर्ण हो जाते हैं। उसके बाद शेष छब्बीस शतकों के योग एक-एक दिन और एक-एक कालग्रहण पूर्वक पूर्ण करते हैं । भगवतीसूत्र के प्रारम्भिक दिन से लेकर इन छब्बीस शतकों के योग तक पचहत्तर कालग्रहण पूर्ण हो जाते हैं। इसके बाद भगवतीसूत्र के समुद्देश एवं अनुज्ञा के निमित्त दो कालग्रहण लिए जाते हैं। इस प्रकार भगवती सूत्र के योग में सतहत्तर कालग्रहण लिए जाते हैं।
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यहाँ गोशालक शतक की अनुज्ञा के पश्चात शेष छब्बीस शतकों के योग पचासवें दिन से लेकर पचहत्तरवें दिन तक उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया पूर्ण करें। शतकों के मध्यगत उद्देशक के आधे शतकों की आदि संज्ञा के द्वारा एवं आधे शतकों की अन्तिम संज्ञा द्वारा उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की विधि करें। अगर शतकों में उद्देशकों की संख्या विषम हो, तो आदि में एक उद्देशक ज्यादा लें अर्थात उनके समान रूप से दो भाग करके, आदि में एक उद्देशक अधिक रखें।
पचासवें दिन योगवाही सोलहवें शतक के उद्देशादि की क्रिया करें, फिर इसी शतक के आदि के सात एवं अन्त के सात - ऐसे चौदह उद्देशकों के उद्देशसमुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया नौवें शतक की भाँति पूर्ण करें। इस दिन एक कालग्रहण लें और नीवि तप करें। इसकी विधि में पूर्ववत सभी क्रियाएँ नौ-नौ बार करें।
इक्यावनवें दिन योगवाही सत्रहवें शतक के उद्देश - समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करें। साथ ही इस शतक के आदि के नौ एवं अन्त के आठ - ऐसे सत्रह उद्देशकों के उद्देश- समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया नौवें शतक की भाँति पूर्ण करें। इस दिन एक कालग्रहण लें और नीवि तप करें। इसकी विधि में पूर्ववत सभी क्रियाएँ नौ-नौ बार करें।
बावनवें दिन योगवाही अठारहवें शतक के उद्देश- समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करें। साथ ही इसी शतक के आदि के पाँच एवं अन्त के पाँच - ऐसे दस उद्देशकों के उद्देश-समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया नौवें शतक की भाँति पूर्ण करें।