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________________ योग तप (आगम अध्ययन) की शास्त्रीय विधि ...333 इन शतकों में क्रमश: चौंतीस, बारह, दस, दस एवं दस उद्देशक हैं। इन सभी शतकों के दो भाग करके एक-एक शतक के उद्देश-समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया एक-एक दिन और एक-एक कालग्रहण के द्वारा करें। प्रत्येक दिन इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत सभी क्रियाएँ नौ-नौ बार करें। - अड़तालीसवें दिन योगवाही गोशालक नामक पन्द्रहवें शतक के उद्देशसमद्देश की क्रिया करें। यदि योगवाही के द्वारा उसी दिन गोशालक शतक सम्यक प्रकार से पढ़ लिया जाए, तो उसी दिन उसकी अनुज्ञा दे दें, अन्यथा दूसरे दिन आयंबिल एवं एक कालग्रहण पूर्वक उसकी अनुज्ञा करें। इस दिन योगवाही एक काल का ग्रहण करें और आयंबिल तप करें। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत सभी क्रियाएँ दो-दो बार करें। उनचासवें दिन गोशालक शतक की अनुज्ञा करें, एक कालग्रहण लें और आयंबिल तप करें। इसकी विधि में सभी क्रियाएँ एक-एक बार करें। • गोशालक शतक के योग में दोनों दिन तीन-तीन दत्तियाँ ग्रहण करें अर्थात दो भोजन की और एक पानी की अथवा दो पानी की और एक भोजन की इस प्रकार तीन दत्तिपूर्वक आहार लें। • गोशालक शतक की अनुज्ञा हो जाने के पश्चात अष्टम योग प्रारम्भ होता है। इस दिन अष्टम योग में प्रवेश करने के निमित्त एक नमस्कारमन्त्र का कायोत्सर्ग करते हैं। कायोत्सर्ग पूर्णकर प्रकट में नमस्कारमन्त्र बोलते हैं। अष्टम योग प्रारम्भ होने पर क्रमश:सात दिन नीवि और आठवें दिन आयंबिल करते हैं। कुछ परम्पराओं में आठवें दिन आयंबिल और नौवें दिन नीवि करते हैं। आचारदिनकर के मत से सात दिन नीवि एवं आठवें दिन आयंबिल इस प्रकार का तप क्रम छह मास तक निरंतर रहता है। किन्तु वर्तमान स्थविरों का यह मत है कि अष्टमी-चतुर्दशी के दिन आयंबिल करें और शेष दिनों में छह महीने के अन्त तक नीवि करें। विधिमार्गप्रपाकार ने सात दिन नीवि और आठवें दिन आयंबिल करने के पश्चात शेष शतकों के योग में नीवि तप करने का उल्लेख किया है। • विधिमार्गप्रपा के मतानुसार गोशालक नामक शतक के अन्तर्गत तेजनिसर्ग नामक अनुज्ञा के दिन नीवि तप के द्वारा नंदी आदि दस प्रकीर्णकों के योग वंदन, खमासमण एवं कायोत्सर्ग पूर्वक पूर्ण किए जाते हैं। दस प्रकीर्णकों
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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