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332... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण
इक्कीसवें दिन योगवाही नौवें - दसवें उद्देशक के उद्देश - समुद्देश करें, फिर चौथे शतक का समुद्देश करें, फिर नौवें - दसवें उद्देशक एवं चतुर्थ शतक की अनुज्ञा करें। इस दिन एक कालग्रहण ले और नीवि तप करें। इसकी विधि में पूर्ववत सभी क्रियाएँ सात-सात बार करें।
बाईसवें दिन योगवाही पाँचवें शतक के उद्देश की क्रिया करें, फिर पाँचवें शतक के पहले दूसरे उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करें। एक कालग्रहण लें और नीवि तप करें। इसकी विधि में पूर्ववत सभी क्रियाएँ सातसात बार करें।
तेइसवें - चौबीसवें और पच्चीसवें दिन क्रमश: तीसरे चौथे, पाँचवें - छठेसातवें-आठवें उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करें। इन दिनों एक-एक काल ग्रहण लें और नीवि तप करें। इसकी विधि में पूर्ववत सभी क्रियाएँ छह-छह बार करें।
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छब्बीसवें दिन योगवाही नौवें दसवें उद्देशक के उद्देश - समुद्देश की क्रिया करें, फिर पाँचवें शतक का समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करें। एक काल ग्रहण लें और नीवि तप करें। इसकी विधि में पूर्ववत सभी क्रियाएँ आठ-आठ बार करें।
सत्ताईसवें दिन से लेकर इकतालीसवें दिन तक छठा, सातवाँ और आठवाँ शतक पाँचवें शतक के समान ही पूर्ण करें। इन तीनों शतकों में दसदस उद्देशक हैं। एक दिन में दो उद्देशक किये जाते हैं। इस प्रकार इन तीनों शतकों को पाँच-पाँच दिन में पूर्ण करें, कुल पन्द्रह दिन में तीनों शतक के योग हो जाते हैं। यहाँ तक भगवती योग के इकतालीस कालग्रहण भी पूरे हो जाते हैं।
बयालीसवें दिन योगवाही नौवें शतक के उद्देश की क्रिया करें, फिर नौवें शतक के आदि के सत्रह एवं अन्त के सत्रह - ऐसे चौंतीस उद्देशकों के उद्देश की क्रिया करें। तत्पश्चात नौवें शतक तथा उसके आदि के सत्रह एवं अन्त के सत्रह - ऐसे चौंतीस उद्देशकों के समुद्देश की क्रिया करें। तत्पश्चात पुनः नौवें शतक तथा उसके आदि के सत्रह एवं अन्त के सत्रह - ऐसे चौंतीस उद्देशकों की अनुज्ञा करें।
तैंतालीसवें दिन से लेकर सैंतालीसवें दिन तक दसवाँ, ग्यारहवाँ, बारहवाँ, तेरहवाँ और चौदहवाँ - इन पाँच शतकों के उद्देश - समुद्देश एवं अनुज्ञा की विधि एक जैसी ही है तथा इन शतकों को नौवें शतक के समान ही पूर्ण करें।