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योग तप (आगम अध्ययन) की शास्त्रीय विधि ...329
आउत्तवाणय ग्रहण भी किया जाता है और विसर्जित भी किया जाता है। भगवतीसूत्र की योगोद्वहन विधि इस प्रकार है
पहले दिन योगवाही सर्वप्रथम भगवतीसूत्र का उद्देश करें, फिर प्रथम शतक के उद्देश की क्रिया करें, फिर प्रथम शतक के पहले दूसरे उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करें। इस दिन एक काल का ग्रहण, नंदी क्रिया और आयंबिल तप करें। इसकी क्रियाविधि में आठ बार मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना करें, आठ बार द्वादशावर्त्त वंदन करें, आठ बार खमासमणापूर्वक वन्दन करें एवं आठ बार कायोत्सर्ग करें।
इसी प्रकार दूसरे दिन प्रथम शतक के तीसरे - चौथे, तीसरे दिन पाँचवेंछठे, चौथे दिन सातवें-आठवें उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करें। इन दिनों एक-एक काल ग्रहण और नीवि तप करें। इसकी विधि में पूर्ववत सभी क्रियाएँ छह-छह बार करें।
पाँचवें दिन योगवाही प्रथम शतक के नौवें - दसवें उद्देशक के उद्देश, समुद्देश की क्रिया करें, फिर पहले शतक का समुद्देश करें, फिर नौवे - दसवें उद्देशक एवं पहले शतक की अनुज्ञा करें। इस दिन एक काल ग्रहण लें और नीवि तप करें। इसकी क्रिया विधि में पूर्ववत सभी क्रियाएँ आठ-आठ बार करें।
छठवें दिन योगवाही द्वितीय शतक के उद्देशक की क्रिया करें, फिर द्वितीय शतक के स्कन्ध नामक प्रथम उद्देशक के उद्देश एवं समुद्देश की क्रिया करें। यदि उस दिन योगवाही स्कन्ध उद्देशक को कण्ठस्थ न कर पाये, तो उस दिन उसकी अनुज्ञा न दें। दूसरे दिन मुखाग्र करने पर आयंबिल तप के द्वारा उसकी अनुज्ञा दें। इस दिन एक काल ग्रहण लें और आयंबिल तप करें। इसकी विधि में पूर्ववत सभी क्रियाएँ तीन-तीन बार करें।
सातवें दिन योगवाही स्कन्धक उद्देशक की अनुज्ञा करें। इसके निमित्त एक काल का ग्रहण करें और आयंबिल तप करें। इसकी क्रियाविधि में पूर्ववत सभी क्रियाएँ एक-एक बार करें।
आठवें दिन योगवाही द्वितीय शतक के दूसरे-तीसरे उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करें, एक काल ग्रहण लें और नीवि तप करें। इसकी विधि में पूर्ववत सभी क्रियाएँ छह-छह बार करें।
इसी प्रकार नौवें - दसवें और ग्यारहवें दिन क्रमशः चौथे-पाँचवें, छठेंसातवें एवं आठवें-नौवें उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करें।