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________________ 328... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण ग्यारहवें में 12, बारहवें में 10, तेरहवें में 10, चौदहवें में 10, पन्द्रहवें में उद्देशक नहीं है। सोलहवें में 14, सत्रहवें में 17. अठारहवें में 10, उन्नीसवें में 10, बीसवें में 10, इक्कीसवें में 80, बाईसवें में 60, तेईसवें में 50, चौबीसवें में 24, पच्चीसवें में 12, छब्बीसवें में 11, सत्ताईसवें में 11, अट्ठाईसवें में 11, उनतीसवें में 11 तीसवें में 11, इकतीसवें में 28, बत्तीसवें में 28, तैंतीसवें में 124, चौतीसवें में 124, पैंतीसवें में 132, छत्तीसवें में 132, सैंतीसवें में 132, अड़तीसवें में 132, उनचालीसवें में 132, चालीसवें में 131, इकतालीसवें में 196 उद्देशक हैं। • दूसरे शतक के प्रथम उद्देशक में स्कंदक और तीसरे शतक के दूसरे उद्देशक में चमर का उल्लेख है। इसी प्रकार पन्द्रहवें उद्देशक में गोशालक का उल्लेख है। इसमें भोजन पानी सहित पैंतीस दत्तियाँ होती हैं। • तृतीय शतक के द्वितीय उद्देशक चमरेन्द्र नामक योग में षष्ठम योग होता है। इस योग में उत्सर्गत: विगय का त्याग करना चाहिए। इस योग काल में पाँच नीवि और छठवें दिन आयंबिल होता है। • पन्द्रहवें गोशालक शतक की अनुज्ञा के पश्चात अष्टम योग लगता है, उसमें सात दिन नीवि एवं आठवें दिन आयंबिल करते हैं। वर्तमान सामाचारी के अनुसार गोशालक शतक के योग में अष्टमी-चतुर्दशी के दिन आयंबिल करते हैं। गोशालक शतक में तीन दत्तियों का भंग होने पर सर्वभग्न माना जाता है। स्पष्ट है कि चमर नामक उद्देशक की अनुज्ञा में षष्ठ योग लगता है और गोशालक नामक पन्द्रहवें शतक की अनुज्ञा में अष्टम योग लगता है। योग दिन की अपेक्षा से कहें तो भगवतीसूत्र के योगोद्वहन के पन्द्रह दिन और पन्द्रह काल ग्रहण पूर्ण होने के बाद षष्ठ योग लगता है तथा भगवतीसूत्र योग के उनचास दिन और उनचास काल ग्रहण पूर्ण होने के पश्चात अष्टम योग लगता है। • भगवतीसूत्र के योग को सतहत्तर (77) दिन और सतहत्तर कालग्रहण करके पूर्ण करते हैं। शेष एक सौ नौ (109) दिन में सूत्रवाचना, कालग्रहण, वन्दन, खमासमणा,कायोत्सर्ग आदि क्रियाएँ नहीं होती हैं परन्तु नीवि तप किया जाता है। • इस सूत्र के योग में स्थिर संघट्टा होता है अर्थात न संघट्टा ग्रहण किया जाता है और न ही विसर्जित किया जाता है ऐसी सामाचारी है, किन्तु
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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