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________________ योग तप (आगम अध्ययन) की शास्त्रीय विधि ...327 समवायांगसूत्र योग विधि • यह चौथा अंगसूत्र है। इस सूत्र में श्रुतस्कन्ध, उद्देशक और अध्ययन नहीं है अतः समवायांग के उद्देश,समुद्देश एवं अनुज्ञा के निमित्त इस योग में तीन दिन लगते हैं। पहले दिन योगवाही समवायांग सूत्र के उद्देश की क्रिया करें। इसके निमित्त एक काल का ग्रहण, नंदी क्रिया एवं आयंबिल तप करें। इसकी क्रियाविधि में सभी क्रिया पूर्ववत एक-एक बार करें। दूसरे दिन योगवाही समवायांगसूत्र के समुद्देश की क्रिया करें। इसके निमित्त एक काल का ग्रहण एवं आयंबिल तप करें। इसकी क्रियाविधि में सभी क्रियाएँ पूर्ववत एक-एक बार करें। तीसरे दिन योगवाही समवायांगसूत्र की अनुज्ञा की क्रिया करें। इसके निमित्त एक काल का ग्रहण, नंदी क्रिया एवं आयंबिल तप करें। इसकी क्रियाविधि में सभी क्रिया पूर्ववत एक-एक बार करें। ___ इस प्रकार समवायांगसूत्र के योगोद्वहन में कुल तीन दिन लगते हैं और दो नंदी होती है। __ श्रीसमवायांगसूत्र- आगाढ़ योग, दिन-3, काल-3, नंदी-2, अंग-4 | 2 अं.उ. नंदी अं. समु. अं.अनु. नंदी कायोत्सर्ग | आ. • आचारदिनकर के अनुसार तप क्रम दशवैकालिकसूत्र के यन्त्रवत समझें। भगवतीसूत्र (व्याख्याप्रज्ञप्ति) योग विधि • यह पांचवाँ अंगसूत्र है। इस सूत्र के योग छह मास और छह दिन अर्थात 186 दिन में पूर्ण होते हैं। • इस पाँचवें अंग में श्रुतस्कन्ध नहीं है। • इस सूत्र में 41 शतक (अध्ययन) हैं। इन 41 शतकों में कुल 1932 उद्देशक हैं- जैसे पहले शतक में 10, दूसरे शतक में 10, तीसरे में 10, चौथे में 10, पाँचवें में 10, छठवें में 10, सातवें में 10, आठवें में 10, नौवें में 34, दसवें में 34, दिन तप __ आ. आ.
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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