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326... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण सम्पन्न करें। इन दिनों में भी एक-एक काल ग्रहण लें और नीवि तप करें। इसकी क्रिया विधि में पूर्ववत ही सभी क्रियाएँ तीन-तीन बार करें।
पन्द्रहवें दिन योगवाही श्रुतस्कन्ध के समद्देश की क्रिया करें। इस दिन एक काल ग्रहण लें और आयंबिल तप करें। इसकी क्रिया विधि में पूर्ववत सभी क्रियाएँ एक-एक बार करें।
सोलहवें दिन योगवाही श्रुतस्कन्ध की अनुज्ञा करें। इस दिन एक कालग्रहण लें, नंदी क्रिया करें और आयंबिल तप करें। इसकी क्रिया विधि में पूर्ववत सभी क्रियाएँ एक-एक बार करें।
सत्रहवें दिन योगवाही स्थानांगसूत्र के समुद्देश की क्रिया करें। इस दिन एक काल ग्रहण लें और आयंबिल तप करें। इसकी क्रिया विधि में पूर्ववत सभी क्रियाएँ एक-एक बार करें।
___ अठारहवें दिन योगवाही स्थानांगसूत्र की अनुज्ञा करें। इस दिन एक काल ग्रहण लें, नंदी क्रिया करें और आयंबिल तप करें। इसकी क्रियाविधि में पूर्ववत सभी क्रियाएँ एक-एक बार करें। ____ इस प्रकार स्थानांग सूत्र के योगोद्वहन में कुल अठारह दिन एवं तीन नंदी होती हैं। श्री स्थानांगसूत्र- श्रुतस्कन्ध-1, अनागाढ़, दिन-18, काल-18,
नंदी-3, अंग-3, अध्ययन-10 दिन | 1 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | अध्ययन अं.उ.,नंदी | 2 | 2 | 3 | 3 | 4 | 4
श्रु.उ.,अ.1 उद्देशक
3/4 | 1/2 | 3/4 | कायोत्सर्ग 5
| आ.
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०
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तप
दिन
15
| 18
श्र.समु
16 17 अध्ययन
श्रु.अनु.| अं.समु. अं.अनु.
नंदी उद्देशक कायोत्सर्ग| 3 | 3 | 3 | 3 | 1 | 1 | 1 | 1 तप । नी. | नी. | नी. | नी. | आ. | आ. | आ. | आ. • आचारदिनकर के अनुसार तप क्रम दशवैकालिकसूत्र के यन्त्रवत समझें।