SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 382
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 324... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण दिन श्री सूत्रकृतांग-द्वितीय श्रुतस्कन्ध, दिन-10, काल-10, नंदी-3, अध्ययन-10 | 1 |2| 3 | 4 | 5 6 7 8 9 | 10 अध्ययन द्वि.श्रु. उ., | 2 | 3 | 4 | 5 |6| 7 | श्रु.समु.अ. अं.समु. अं.अ. | नंदी,अ. 1| | | | नंदी | | नंदी कायोत्सर्ग| 4 |3| 3 | 3 | 3 | 3 | 3 | 2 | 1 | 1 तप | आ. नी. नी. | नी. | नी. | नी. | नी. आ. | आ. | आ. • आचारदिनकर के अनुसार तप क्रम दशवैकालिकसूत्र के यन्त्रवत समझें। स्थानांगसूत्र योग विधि • यह तीसरा अंग सूत्र है। इस सूत्र के योग में प्रवेश करने के दिन सर्वप्रथम नंदी क्रिया करते हैं, फिर स्थानांग सूत्र का उद्देश करते हैं, फिर श्रुतस्कन्ध का उद्देश करते हैं, फिर प्रथम अध्ययन के उद्देशादि की क्रिया करते हैं। • स्थानांगसूत्र में एक श्रुतस्कन्ध और दस अध्ययन हैं। प्रथम अध्ययन एक समान है, दूसरे अध्ययन में चार, तीसरे अध्ययन में चार, चौथे अध्ययन में चार, पाँचवें अध्ययन में तीन उद्देशक हैं। छह से लेकर दस तक पाँच अध्ययन एक समान हैं और इसमें कुल पन्द्रह उद्देशक हैं। • स्थानांगसूत्र के अध्ययनों के नाम ये हैं- एक स्थान, दो स्थान, तीन स्थान से लेकर दस स्थान तक हैं। स्थानांगसूत्र की योगोद्वहन विधि यह है__ पहले दिन योगवाही स्थानांगसूत्र का उद्देश करें, फिर श्रुतस्कन्ध का उद्देश करें, फिर प्रथम अध्ययन के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करें। इन वाचनाओं के निमित्त एक काल का ग्रहण करें, नंदी क्रिया एवं आयंबिल तप करें। इसकी क्रिया विधि में पाँच बार मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना, पाँच बार द्वादशावर्तवंदन, पाँच बार खमासमणसूत्र पूर्वक वंदन एवं पाँच बार मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना करें। दूसरे दिन योगवाही द्वितीय अध्ययन का उद्देश करें, फिर द्वितीय अध्ययन के पहले-दूसरे उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करें। इस दिन एक कालग्रहण लें और नीवि तप करें। इसकी क्रियाविधि में पूर्ववत सभी क्रियाएँ सात-सात बार करें। तीसरे दिन योगवाही द्वितीय अध्ययन के तीसरे-चौथे उद्देशक के उद्देश एवं समुद्देश की क्रिया करें। फिर द्वितीय अध्ययन का समुद्देश करें, फिर तीसरे
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy