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योग तप (आगम अध्ययन) की शास्त्रीय विधि... 323
• सूत्रकृतांग के द्वितीय श्रुतस्कन्ध की योगविधि यह हैपहले दिन योगवाही द्वितीय श्रुतस्कन्ध का उद्देश करें, फिर द्वितीय श्रुतस्कन्ध के पुंडरीक नामक प्रथम अध्ययन के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करें। इन उद्देशादि के निमित्त एक काल का ग्रहण करें, नंदी क्रिया करें और आयंबिल तप करें। इसकी क्रिया विधि में चार बार मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना,चार बार द्वादशवर्त्तवन्दन, चार बार खमासमणसूत्र पूर्वक वंदन एवं चार बार मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना करें।
दूसरे दिन योगवाही क्रियास्थान नामक द्वितीय अध्ययन के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करें, एक कालग्रहण लें और नीवि तप करें। इसकी विधि में पूर्ववत सभी क्रियाएँ तीन-तीन बार करें।
तीसरे दिन से लेकर सातवें दिन तक शेष पाँच अध्ययनों को एक-एक दिन में पूर्ण करें तथा इनके उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया पूर्ववत ही सम्पन्न करें। इन दिनों में भी एक-एक काल ग्रहण लें और नीवि तप करें। इनकी क्रियाविधि में पूर्ववत सभी क्रियाएँ तीन-तीन बार करें।
आठवें दिन योगवाही श्रुतस्कन्ध के समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करें। एक कालग्रहण लें, नंदी क्रिया और आयंबिल तप करें। इसकी क्रियाविधि में पूर्ववत सभी क्रियाएँ दो-दो बार करें।
नौवें दिन योगवाही सूत्रकृतांग के समुद्देश की क्रिया करें, एक काल का ग्रहण करें, नंदी क्रिया और आयंबिल तप करें। इसकी विधि में पूर्ववत सभी क्रियाएँ एक-एक बार करें।
दसवें दिन योगवाही सूत्रकृतांग के उद्देश की क्रिया करें, एक काल का ग्रहण करें और आयंबिल तप करें। इसकी क्रियाविधि में पूर्ववत सभी क्रियाएँ एक-एक बार करें।
इस प्रकार सूत्रकृतांग के द्वितीय श्रुतस्कन्ध के योग दस दिन के होते हैं। दोनों श्रुतस्कन्धों में कुल मिलाकर तीस दिन, तीस काल एवं पाँच नंदी होती है ।