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________________ 322... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण पूर्ववत करें तथा दस दिन तक एक- एक कालग्रहण लें और नीवि तप करें। इन अध्ययनों की क्रियाविधि में सभी क्रियाएँ पूर्ववत तीन-तीन बार करें। बीसवें दिन योगवाही प्रथम श्रुतस्कन्ध का समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करें। इस दिन एक कालग्रहण लें, नंदी क्रिया करें और आयंबिल का प्रत्याख्यान करें। इसकी क्रियाविधि में पूर्ववत सभी क्रियाएँ दो-दो बार करें। इस प्रकार सूत्रकृतांग के प्रथम श्रुतस्कन्ध के योग बीस दिन के होते हैं। श्री सूत्रकृतांगसूत्र प्रथम श्रुतस्कन्ध-अनागाढ़, दिन- 20, काल- 20, नंदी - 2, अंग - 2, अध्ययन - 16 दिन अध्ययन उद्देश कायोत्सर्ग तप दिन अध्ययन उद्देशक कायोत्सर्ग तप 1 अं.उ., नंदी श्रु.उ., अ.1 11 8 0 3 1/2 3/4 1/2 9 आ. + 2 नी. 2 1 3 2 42 5 3 7 354 10 11 0 0 3 3 नी. नी. co ♡ 1/2 8 9 नी. नी. नी. नी. नी. नी. नी. नी. 6 3 520 1/2 3/4 1/2 12 7 4 7 8 9 F 8 5 12 13 14 15 16 17 18 19 9 13 14 15 16 0 0 0 0 0 9 6 ० 034 3 3 3 3 3 नी. नी. नी. नी. नी. नी. 3 F 10 7 0 3 नी. 20 प्र. श्रु. समु. अनु. नंदी 2 आ. • आचारदिनकर के अनुसार तपक्रम दशवैकालिकसूत्र के यन्त्रवत समझें। द्वितीय श्रुतस्कन्ध • सूत्रकृतांगसूत्र के द्वितीय श्रुतस्कन्ध में सात अध्ययन एक समान हैं। इनमें उद्देशक नहीं है, अतः एक दिन में एक अध्ययन पूर्ण किया जाता है और तीन दिन अंगसूत्र एवं श्रुतस्कन्ध के समुद्देश एवं अनुज्ञा में लगते हैं। इस प्रकार इस योग में कुल दस दिन लगते हैं। • द्वितीय श्रुतस्कन्ध के अध्ययनों के नाम ये हैं- 1. पुंडरीक 2. क्रियास्थान 3. आहारपरिज्ञा 4. प्रत्याख्यानपरिज्ञा 5. अनगार 6. आर्द्रकीय 7. नालन्दा।
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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