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________________ 318... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण सोलहवें दिन योगवाही निषीधिका नामक नौवें अध्ययन के उद्देश - समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करें, एक कालग्रहण लें और नीवि तप करें। इसकी क्रियाविधि में पूर्ववत सभी क्रियाएँ तीन-तीन बार करें। सत्रहवें दिन योगवाही उच्चार प्रस्रवण नामक दसवें अध्ययन के उद्देशसमुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करें, एक कालग्रहण लें और आयंबिल तप करें। इसकी क्रियाविधि में पूर्ववत सभी क्रियाएँ तीन-तीन बार करें। अठारहवें दिन योगवाही शब्द नामक ग्यारहवें अध्ययन के उद्देश - समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करें, एक कालग्रहण लें और नीवि तप करें। इसकी क्रियाविधि में पूर्ववत सभी क्रियाएँ तीन-तीन बार करें। उन्नीसवें दिन योगवाही रूप नामक बारहवें अध्ययन के उद्देश - समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करें, एक कालग्रहण लें और आयंबिल तप करें। इसकी क्रियाविधि में पूर्ववत सभी क्रियाएँ तीन-तीन बार करें। बीसवें दिन योगवाही परक्रिया नामक तेरहवें अध्ययन के उद्देश - समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करें, एक कालग्रहण लें और नीवि तप करें। इसकी क्रियाविधि में पूर्ववत सभी क्रियाएँ तीन-तीन बार करें। इक्कीसवें दिन योगवाही अन्योन्य क्रिया नामक चौदहवें अध्ययन के उद्देश - समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करें, एक काल ग्रहण लें और नीवि तप करें। इसकी क्रियाविधि में पूर्ववत सभी क्रियाएँ तीन-तीन बार करें। बाईसवें दिन योगवाही भावना नामक पन्द्रहवें अध्ययन के उद्देश - समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करें, एक कालग्रहण लें और नीवि तप करें। इसकी क्रियाविधि में पूर्ववत सभी क्रियाएँ तीन-तीन बार करें। इस दिन के बाद से आयुक्तपान का परित्याग होता है। तेईसवें दिन योगवाही विमुक्त नामक सोलहवें अध्ययन के उद्देश- समुद्देशअनुज्ञा की क्रिया करें, एक कालग्रहण लें और नीवि तप करें। इसकी क्रियाविधि पूर्ववत सभी क्रियाएँ तीन-तीन बार करें। चौबीसवें दिन योगवाही द्वितीय श्रुतस्कन्ध के समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करें। इस दिन एक काल का ग्रहण करें, नंदी क्रिया करें और आयंबिल तप करें। इसकी क्रियाविधि में पूर्ववत सभी क्रियाएँ दो-दो बार करें। पच्चीसवें दिन योगवाही आचारांगसूत्र के समुद्देश की क्रिया करें, एक काल का ग्रहण करें और आयंबिल तप करें। इसकी क्रियाविधि में पूर्ववत सभी क्रियाएँ एक-एक बार करें।
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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