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योग तप (आगम अध्ययन) की शास्त्रीय विधि ...315 का उद्देश किया जाता है। यह श्रुतविधि सभी अंगसूत्र एवं श्रुतस्कन्ध के प्रवेश दिन में की जाती है।
• द्वितीय श्रुतस्कन्ध में सोलह अध्ययन एवं चौबीस उद्देशक हैं। पहले अध्ययन में ग्यारह, दूसरे-तीसरे अध्ययन में तीन, चौथे से लेकर सातवें- इन चार अध्ययनों में दो-दो उद्देशक हैं, शेष नौ अध्ययन एक समान हैं अर्थात उद्देशक से रहित हैं।
• सप्ततिका नामक सात अध्ययन (8 से 14 अध्ययन) एक समान होने से आउत्तवाणय की विधि एवं भगवतीसूत्र के योग में षष्ठ योग लगने की विधि पूर्वक एक अध्ययन को एक दिन में वहन (पूर्ण) करते हैं। पन्द्रहवाँ एवं सोलहवाँ अध्ययन भी एक समान होने से एक-एक दिन में पूर्ण किए जाते हैं। इस प्रकार 8 से 16 कुल 9 अध्ययनों में नौ दिन लगते हैं।
• परम्परागत धारणा के अनुसार 15वें (अथवा 39 वें) कालग्रहण से लेकर सप्ततिका के सात और एक वृद्धि का ऐसे कुल आठ दिन आगाढ़ होते हैं। इन आठ दिनों के पश्चात 22वाँ और 23वाँ (अथवा 46वाँ-47वाँ) काल ग्रहण ले सकते हैं। 24, 25, 26 वें कालग्रहण के तीन दिन आकसन्धि के होते हैं।
• द्वितीय श्रुतस्कन्ध में सोलह अध्ययनों की पाँच चूलाएँ होती हैं। • द्वितीय श्रुतस्कन्ध के अध्ययनों के नाम ये हैं
1. पिण्डैषणा 2. शय्या 3. ईर्या 4. भाषाजात 5. वस्त्रैषणा 6. पात्रैषणा 7. अवग्रह प्रतिमा- इन सात अध्ययनों की प्रथम चूला होती है। 8. स्थान 9. निषीधिका 10. उच्चार-प्रस्रवण 11. शब्द 12. रूप 13. परक्रिया 14. अन्योन्य क्रिया- इन सात अध्ययनों की दूसरी चूला है। इन्हें सप्ततिका अध्ययन कहते हैं। 15. भावना अध्ययन की तीसरी चूला है। 16. विमुक्ति अध्ययन की चौथी चूला है। निशीथ अध्ययन की पाँचवीं चूला मानी जाती है, जो इस सूत्र से पृथक कर दिया गया है।
आचारांग के द्वितीय श्रुतस्कन्ध की योगविधि यह है
पहले दिन योगवाही सबसे पहले द्वितीय श्रुतस्कन्ध का उद्देश करें, फिर पिण्डैषणा नामक प्रथम अध्ययन का उद्देश करें, फिर प्रथम अध्ययन के पहले एवं दूसरे उद्देशक के उद्देश-समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करें। इन उद्देशादि की वाचना निमित्त एक कालग्रहण लें, नंदीक्रिया और आयंबिल तप करें। इसकी