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________________ योग तप (आगम अध्ययन) की शास्त्रीय विधि ...311 समुद्देश करें, फिर उसी दिन दिन के अन्तिम प्रहर में प्रथम अध्ययन के पहले और दूसरे उद्देशक की अनुज्ञा करें। इस दिन अंग सूत्र के उद्देशादि के निमित्त एक कालग्रहण लें, नंदीक्रिया करें एवं आयंबिल तप करें। ___इस दिन की समग्रविधि में नौ बार मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना करें, नौ बार द्वादशावत वन्दन करें, नौ बार खमासमणसूत्र पूर्वक वन्दन करें एवं नौ बार कायोत्सर्ग करें। दूसरे दिन योगवाही प्रथम अध्ययन के तीसरे एवं चौथे उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करें, एक कालग्रहण लें और नीवि तप करें। इसकी विधि में पूर्ववत सभी क्रियाएँ छह छह बार करें। तीसरे दिन योगवाही प्रथम अध्ययन के पाँचवें एवं छठवें उद्देशक के उद्देश-समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करें। इसकी विधि में पूर्ववत सभी क्रियाएँ छह छह बार करें। चौथे दिन योगवाही सबसे पहले प्रथम अध्ययन के सातवें उद्देशक का उद्देश एवं समुद्देश करें, फिर प्रथम अध्ययन का समुद्देश करें, फिर क्रमश: सातवें उद्देशक एवं प्रथम अध्ययन की अनुज्ञा विधि करें। इस दिन उद्देशादि के निमित्त एक कालग्रहण लें एवं नीवि तप करें। इसकी विधि में पूर्ववत सभी क्रियाएँ पाँच-पाँच बार करें। इस प्रकार पहला अध्ययन चार दिन में पूर्ण होता है। पाँचवें दिन योगवाही लोकविजय नामक द्वितीय अध्ययन का उद्देश करें, फिर द्वितीय अध्ययन के पहले एवं दूसरे उद्देशक के उद्देश-समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करें। इन उद्देशादि के निमित्त एक कालग्रहण लें एवं नीवि तप करें। इसकी विधि में पूर्ववत सभी क्रियाएँ सात-सात बार करें। __छठे दिन योगवाही द्वितीय अध्ययन के तीसरे एवं चौथे उद्देशक के उद्देशसमुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करें, इस दिन एक कालग्रहण लें और नीवि तप करें। इसकी विधि में पूर्ववत सभी क्रियाएँ छह छह बार करें। सातवें दिन योगवाही द्वितीय अध्ययन के पाँचवें एवं छठे उद्देशक के उद्देश एवं समुद्देश की क्रिया करें, फिर द्वितीय अध्ययन का समुद्देश करें, फिर पाँचवें-छठे उद्देशक एवं द्वितीय अध्ययन की अनुज्ञा करें। इस दिन एक कालग्रहण लें और नीवि तप करें। इसकी विधि में पूर्ववत सभी क्रियाएँ आठआठ बार करें। इस प्रकार दूसरा अध्ययन तीन दिन में पूर्ण होता है। आठवें दिन योगवाही शीतोष्णीय नामक तृतीय अध्ययन का उद्देश करें,
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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