________________
306... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण
• इस सूत्र के योगकाल में वस्त्रों को धूप में देना, भिगोना आदि वर्जित है। • छत्तीस अध्ययनों के नाम इस प्रकार हैं- 1. विनयश्रुत 2. परीषह 3. चातुरंगीय 4. असंस्कृत अथवा प्रमादाप्रमाद 5. अकाम मरणीय 6. क्षुल्लक निर्ग्रन्थीय 7. एलक 8. कापिलिक 9. नमिप्रव्रज्या 10. द्रुमपत्रक 11. बहुश्रुतपूजा 12. हरिकेशीय 13. चित्त संभूतीय 14. इषुकारीय 15. सभिक्षु अध्ययन 16. ब्रह्मचर्य समाधिस्थान 17. पापश्रमणीय 18. संयतीय 19. मृगापुत्रीय 20. महानिर्ग्रन्थीय 21. समुद्रपालीय 22. रथनेमीय 23. केशी-गौतमीय 24. समिति 25. यज्ञीय 26. सामाचारी 27. खलुंकीय 28. मोक्षमार्ग गति 29. सम्यक्त्व पराक्रम 30. तपोमार्ग गति 31. चरण विधि 32. प्रमाद स्थान 33. कर्मप्रकृति 34. लेश्या 35. अनगार मार्ग 36. जीवाजीव विभक्ति।
उत्तराध्ययनसूत्र की योगविधि यह है
पहले दिन योगवाही उत्तराध्ययनसूत्र के श्रुतस्कन्ध का उद्देश और प्रथम अध्ययन की उद्देश-समुद्देश एवं अनुज्ञा विधि करें। इस दिन आयंबिल तप, नंदीक्रिया एवं एक कालग्रहण भी करें। इसकी क्रियाविधि में योगवाही चार बार मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना करें, चार बार द्वादशावर्त वन्दन करें, चार बार खमासमण सूत्र पूर्वक वन्दन करें और चार बार कायोत्सर्ग करें।
दूसरे दिन योगवाही द्वितीय अध्ययन की उद्देश-समुद्देश एवं अनुज्ञा विधि करें और एक कालग्रहण एवं नीवि तप करें। इसकी क्रिया में पूर्ववत सभी क्रियाएँ तीन-तीन बार करें।
तीसरे दिन योगवाही तृतीय अध्ययन की उद्देश-समुद्देश एवं अनुज्ञा विधि करें। एक कालग्रहण लें एवं नीवि तप करें। इसकी क्रियाविधि में पूर्ववत सभी क्रियाएँ तीन-तीन बार करें।
चौथे दिन योगवाही चतुर्थ अध्ययन की उद्देश-समुद्देश एवं अनुज्ञा विधि करें। एक कालग्रहण लें एवं नीवि तप करें। यदि योगवाही उसी दिन असंस्कृत नामक अध्ययन की तेरह गाथाओं को सम्यक रूप से पढ़कर मुखाग्र कर लेता है तो उसे उसी दिन उसकी अनुज्ञा दें, अन्यथा तेरह गाथाओं के कण्ठस्थ होने पर दूसरे दिन आयंबिल आदि करवाकर अनुज्ञा दें। इसकी क्रियाविधि में स्थिति के अनुसार मुखवस्त्रिका आदि सभी क्रियाएँ पूर्ववत दो-दो बार या तीन-तीन बार करें।