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योग तप (आगम अध्ययन) की शास्त्रीय विधि ...305 किन्तु श्रुत के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा हेतु नंदी नहीं होती है। नव दीक्षित मुनि उपस्थापन या महाव्रत आरोपण की नंदी विधि के द्वारा ही सम्पर्ण मण्डलियों में प्रवेश पा लेता है। ____ सात मण्डली के नाम हैं- 1. सूत्र मंडली 2. अर्थ मंडली 3. भोजन मंडली 4. काल मंडली 5. आवश्यक (प्रतिक्रमण) मंडली 6. स्वाध्याय मंडली और 7. संस्तारक मंडली। उत्तराध्ययनसूत्र योग विधि
• उत्तराध्ययनसूत्र में एक श्रुतस्कन्ध और छत्तीस अध्ययन हैं। एक अध्ययन एक दिन में पूर्ण होता है। विशेष यह है कि यदि योगवाही चतुर्थ 'असंखय' नामक अध्ययन की तेरह गाथाओं को उसी दिन सम्यक रूप से पढ़कर मुखाग्र कर लेता है, तो उसे उसी दिन नीवि तप से अनुज्ञा दे देते हैं, यदि तेरह गाथाएँ कण्ठस्थ नहीं कर पाए तो उस दिन आयंबिल करवाकर दूसरे दिन आयंबिलपूर्वक अनुज्ञा देते हैं। इस प्रकार दो दिन और दो आयंबिल के द्वारा 'असंखय' अध्ययन का योग पूर्ण होता है। ___कुछ आचार्यों के मतानुसार यदि योगवाही दिन की प्रथम पौरुषी के मध्य में 'असंखय' अध्ययन को मुखाग्र कर ले, तो उस दिन नीवि तप द्वारा अनुज्ञा की जाती है, यदि तेरह गाथाओं को मुखाग्र न कर पाए तो आयंबिल करवाया जाता है। उसके बाद उस दिन की अंतिम पौरुषी के मध्य में भी 'असंखय' अध्ययन की तेरह गाथाओं को कंठाग्र कर ले तो उसी दिन अनुज्ञा दे दी जाती है। यदि दूसरे दिन प्रथम पौरुषी के मध्य में इस अध्ययन को पूर्ण करता है तो भी उस दिन नीवि तप द्वारा अनुज्ञा दी जाती है।
• उत्तराध्ययन के छत्तीस अध्ययन 36 या 37 दिनों में पूर्ण होते हैं। उसके बाद दो दिन श्रुतस्कन्ध के समुद्देश एवं अनुज्ञा में लगते हैं। इस प्रकार इस सूत्र के योग कुल 38 या 39 दिनों में पूर्ण होते हैं।
• दूसरी विधि के अनुसार उत्तराध्ययन के योग 27 या 28 दिन में पूर्ण होते हैं। वह इस प्रकार है- एक से लेकर चौदह अध्ययन एक समान हैं। इसलिए एक दिन में एक अध्ययन की वाचना ही दी जाती है, शेष बाईस अध्ययनों को एक-एक दिन में दो-दो अध्ययन की वाचना देकर पूर्ण करते हैं। श्रुतस्कंध के समुद्देश एवं अनुज्ञा में दो दिन लगते हैं। इस प्रकार 14 + 11 + 2 = 27 या 28 दिन में इसके योग पूर्ण होते हैं।