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300... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण
अनुज्ञा दिन में नन्दी होती है।
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अंगसूत्र एवं श्रुतस्कन्ध के उद्देश - समुद्देश और अनुज्ञा दिन में आयंबिल होता है, अन्य दिनों में नीवि होती है । 1
• आचारदिनकर के अनुसार अंगसूत्रों एवं श्रुतस्कन्ध के उद्देशादि दिनों में आयंबिल करना चाहिए तथा शेष दिनों में एकान्तर आयंबिल और नीवि - इस क्रम से तप करने का निर्देश है। 2 वहाँ विधिमार्गप्रपा के मतानुसार शेष दिनों में नीवि तप करना चाहिए ।
• आवश्यकसूत्र के छह अध्ययन के नाम ये हैं- 1. सामायिक 2. चतुर्विंशतिस्तव 3. वंदन 4. प्रतिक्रमण 5. कायोत्सर्ग और 6. प्रत्याख्यान । • विधिमार्गप्रपा के अनुसार ओघनिर्युक्ति, आवश्यकसूत्र में ही अनुप्रविष्ट है। इसलिए ओघनियुक्ति का पृथक योग नहीं कहा गया है। 3
आवश्यकसूत्र की योगविधि इस प्रकार है
आवश्यकसूत्र का योग जिस दिन प्रारम्भ हो, उस प्रथम दिन में श्रुतस्कन्ध का उद्देश और सामायिक नामक प्रथम अध्ययन का उद्देश - समुद्देश एवं अनुज्ञा करें। इस दिन योगवाही आयंबिल तप करें तथा उद्देशादि की क्रिया नन्दी के समक्ष करें। इस दिन की क्रिया में योगवाही चार बार मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना करें, चार बार द्वादशावर्त्तवन्दन करें, चार बार खमासमणसूत्र पूर्वक वन्दन करें और तीन बार कायोत्सर्ग करें।
दूसरे दिन योगवाही द्वितीय चतुर्विंशतिस्तव नामक अध्ययन का उद्देश (वाचना), समुद्देश (अर्थबोध ) और अनुज्ञा (अध्यापन की अनुमति) की विधि करें और नीवि तप करें। इसकी क्रियाविधि में योगवाही तीन बार मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना करें, तीन बार द्वादशावर्त्त वंदन करें, तीन बार खमासमणसूत्र पूर्वक वन्दन करें और तीन बार कायोत्सर्ग करें।
तीसरे दिन योगवाही तृतीय वन्दन नामक अध्ययन का उद्देश - समुद्देशअनुज्ञा करें और नीवि करें। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत तीन बार मुखवस्त्रिका का प्रतिलेखन करें, तीन बार द्वादशावर्त्तवन्दन करें, तीन बार खमासमणसूत्र पूर्वक वन्दन करें और तीन बार कायोत्सर्ग करें।
चौथे दिन योगवाही चतुर्थ प्रतिक्रमण नामक अध्ययन का उद्देश - समुद्देश एवं अनुज्ञा करें और तप में नीवि करें। इसकी क्रिया में योगवाही पूर्ववत मुखवस्त्रिका प्रतिलेखन, कायोत्सर्ग आदि सभी क्रियाएँ तीन-तीन बार करें।