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अध्याय-6 योग तप (आगम अध्ययन) की शास्त्रीय विधि
जिन सूत्रों में आप्त पुरुषों की वाणी संकलित है, वे आगम कहलाते हैं। श्वेताम्बर की प्रचलित परम्परा में सामान्यत: 45 आगम माने जाते हैं। जैनाचार्यों ने मन-वचन-काया की एकाग्रता एवं विशिष्ट तप पूर्वक आगम ग्रन्थों को पढ़नेपढ़ाने का उपदेश दिया है।
आगम सूत्रों का अध्ययन करते समय किस आगम के लिए कौनसा तप करना चाहिए तथा त्रियोग की पवित्रता बनाये रखने हेतु वंदन-कायोत्सर्ग आदि कितनी संख्या में करना चाहिए? यदि इस सम्बन्ध में जैन साहित्य का अन्वेषण किया जाए तो सामाचारी संग्रह, प्राचीन सामाचारी, तिलकाचार्य सामाचारी, सुबोधा सामाचारी, विधिमार्गप्रपा एवं आचारदिनकर आदि ग्रन्थ उपलब्ध होते हैं।
उपरोक्त सभी ग्रन्थ लगभग परम्परागत सामाचारी से सम्बन्धित हैं, यद्यपि विधिमार्गप्रपा एवं आचारदिनकर की सामाचारी वर्तमान में तपागच्छ आदि कुछ आम्नायों में विशेष रूप से स्वीकार्य रही है। इसका मुख्य कारण यह है कि इनमें इस क्रिया-विधि का सुविस्तृत एवं शास्त्र सम्मत निरूपण किया गया है। जहाँ तक खरतर या तपागच्छ आदि परम्पराओं का प्रश्न है वहाँ खरतरगच्छ परम्परा विधिमार्गप्रपा का अनुसरण करती है और तपागच्छ आदि परम्पराएँ मुख्यतया आचारदिनकर की सामाचारी का अनुकरण करती हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार विधिमार्गप्रपा एवं आचारदिनकर दोनों खरतरगच्छ के आचार्यों द्वारा रचित हैं
और उनमें सर्वाधिक मतभेद तप-क्रम को लेकर ही है, शेष विधि लगभग समान है। यहाँ ग्रन्थों की मूल्यवत्ता और प्राचीनता को लक्ष्य में रखते हुए विधिमार्गप्रपा एवं आचारदिनकर दोनों के अनुसार योग तप की विधि कहेंगे। आवश्यकसूत्र योग विधि ___• आवश्यकसूत्र में एक श्रुतस्कन्ध और छह अध्ययन हैं। • श्रुतस्कन्ध के योग में दो दिन और छह अध्ययन के योग में छह दिन ऐसे कुल आठ दिनों में इस सूत्र के योग पूर्ण होते हैं। • सभी अंगसूत्र एवं श्रुतस्कन्ध के उद्देश और