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________________ 296... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण 46. वैरात्रिक और प्राभातिक काल में पश्चिम तरफ तथा व्याघातिक और अर्द्धरात्रिक काल में दक्षिण दिशा तरफ जायें। 47. व्याघातिक काल हो तो 'देवसी' बोलना, शेष तीन काल में 'राई' कहना । 48. व्यवहारभाष्य, 3032-3040 49. तिलकाचार्य सामाचारी, पृ. 42-43 50. प्राचीन सामाचारी, पृ. 17-19 51. सुबोधा सामाचारी, पृ. 21-22 52. विधिमार्गप्रपा - सानुवाद, पृ. 125-128 53. आचारदिनकर, पृ. 87-90 54. (क) श्री बृहद्योगविधि, पृ. 15 (ख) विधिमार्गप्रपा, पृ. 125 55. सुबोधासामाचारी, पृ. 22 56. प्राचीन सामाचारी, पृ. 18 57. विधिमार्गप्रपा, पृ. 126 58, आचार दिनकर, पृ. 88 59. तिलकाचार्य सामाचारी, पृ. 43 60. श्री बृहद्योगविधि, पृ. 16 61. आचारदिनकर, पृ. 88 62. श्री प्रव्रज्या योगादि विधिसंग्रह, पृ. 49-51 63. मूलाचार, गा. 270 की टीका, पृ. 225-226 64. विधिमार्गप्रपा- सानुवाद, पृ. 129 65. आचारदिनकर, पृ. 90 66. (क) श्री प्रव्रज्या योगादि विधि संग्रह, पृ. 53 (ख) श्री बृहद् योगविधि, पृ. 22-23 67. काल प्रवेदन करना भूल जाएं तो गृहीत सभी कालग्रहण की क्रियाएँ निष्फल हो जाती है, उस दिन पवेयणा की क्रिया हो सकती है। 68. व्यवहारभाष्य, गा. 3190 69. तिलकाचार्य सामाचारी, पृ. 44 70. सुबोधा सामाचारी, पृ. 22 71. प्राचीन सामाचारी, पृ. 19
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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