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योगोद्वहन सम्बन्धी विविध विधियाँ ...295
पादोसियाड्डरत्ते,उत्तरसिदि पुव्व पेहए कालं। वेरत्तियम्मि भयणा, पुवदिसा पच्छिमे काले ॥
(ख) व्यवहारभाष्य, गा. 3200 32. विधिमार्गप्रपा-सानुवाद, पृ. 124 33. फिडियंमि अड्डरत्ते, कालं घित्तुं सुवंति जागरिया। ताहे गुरु गुणंती, चउत्थि सव्वे गुरु सुरुइ ।
(क) आवश्यकनियुक्ति, गा. 1409 पादोसिएण सव्वे, पढमं पोरिसि करेंति सज्झायं । ताधे उ सुत्तइत्ता, सुवंति जग्गंति व सभा उ॥ फिडितम्मि अद्धरत्ते, कालं घेत्तुं सुवंति जागरिता। ताहे गुरु गुणंती, चउत्थ सव्वे गुरु सुवति ।
(ख) व्यवहारभाष्य, गा. 3203-3204 34. कालचउक्कं उक्कोसएण, जहन्न तियं तु बोद्धव्वं ।
बीयपएणं तु दुर्ग, मायामय विप्पमुक्काणं । गहियमि अड्डरते, वेरत्तिय अगहिए भवइ तिन्नि । वेरत्तिय अड्डरत्ते, अइ उवओगा भवे दुण्णि ।
(क) आवश्यकनियुक्ति, गा. 1408, 1410
(ख) व्यवहारभाष्य, 3201, 3205-3206 35. आचारदिनकर, पृ. 86-87 36. विधिमार्गप्रपा-सानुवाद, पृ. 145 37. आचारदिनकर, 86 38. वही, पृ. 90 39. व्यवहारभाष्य-सानुवाद, मुनि दुलहराज, 3165-67, 3170, 3182-86, 89 40. विधिमार्गप्रपा-सानुवाद, पृ. 124 41. बृहद्योगविधि, पृ. 143-44 42. विधिमार्गप्रपा, सानुवाद, पृ. 124-25 43. बृहद्योगविधि, पृ. 143 44. विधिमार्गप्रपा-सानुवाद, पृ. 125-128 45. वैरात्रिक एवं प्राभातिक काल हो तो पूर्व दिशा की और जाएं तथा व्याघातिक
एवं अर्द्धरात्रि काल हो तो उत्तरदिशा की ओर जाएं।