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294... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण
22. श्री प्रव्रज्या योगादि विधि संग्रह, पृ. 51-53
23. वही, J. 63-64
24. यदि उपवासी मुनि हो तो द्वादशावर्त्तवन्दन न करें, केवल खमासमण देकर प्रत्याख्यान करें।
25. जिस कालिक सूत्र का योग चल रहा है, उस सूत्र की अनुज्ञा न हो, तब तक योगवाही 'दांडी काल मांडला' का आदेश लें।
26. दुविहो उ होइ कालो, वाघाइम इतरो य नायव्वो । वाघातो घंघसालाए, घट्टणं सड्ढकहणं वा ॥
(क) आवश्यकनिर्युक्ति, गा. 1383 दुविधो य होति कालो, वाघातिम एतरो य नायव्वो । वाघातो घंघसालाय, घट्टणं धम्मकहणं वा ।।
(ख) व्यवहारभाष्य, गा. 3163 (ग) विधिमार्गप्रपा - सानुवाद, पृ. 123
27. आवश्यकनियुक्ति, गा. 1383
आचार्य भद्रबाहु द्वितीय- यह मान्यता शास्त्र संशोधक मुनिराज श्री पुण्यविजयजी आदि विद्वानों के अनुसार है । वे नियुक्तिकार के रूप में द्वितीय कोही कर्त्ता मानते हैं।
पारम्परिक मान्यतानुसार सभी नियुक्तियाँ प्रथम भद्रबाहु स्वामी रचित हैं। 28. विधिमार्गप्रपा - सानुवाद, पृ. 123
29. कालचउक्के णाणत्तगं तु, पाओसियंमि सव्वेवि । समयं पट्टवयंती, सेसेसु समं व विसमं वा ॥ (क) आवश्यकनिर्युक्ति, गा. 1401 पादोसितो अभिहितो, इदाणि सामन्नतो तु वोच्छामि । कालचउक्कस्स वि तू, उवघायविधी उ जो जस्स ।।
(ख) व्यवहारभाष्य, गा. 3194
30. विधिमार्गप्रपा, पृ. 123
31. पाओसि अड्ढरत्ते, उत्तरदिसि पुव्व पेहए कालं ।
वेरत्तियंमि भयणा, पुव्वदिसा
पच्छिमे काले ॥
(क) आवश्यकनिर्युक्ति, गा. 1407