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योगोद्वहन सम्बन्धी विविध विधियाँ ...293 क्षयोपशम होता है। प्रशमरतिग्रन्थ में ज्ञान का फल विरति बताया गया है। अतः सम्यक ज्ञान के अर्जन में एवं तत्स्वरूप आचरण में योगोद्वहन विधि परमावश्यक है। सन्दर्भ-सूची 1. विधिमार्गप्रपा-सानुवाद, पृ. 130 2. (क) आचारदिनकर, पृ. 93
(ख) श्री बृहद्योगविधि, पृ. 2 3. विधिमार्गप्रपा-सानुवाद, पृ. 130-133 4. आचारदिनकर, 91 5. लघुनन्दि पाठ इस विधि के प्रारम्भ में दिया गया है। 6. (क) श्री प्रव्रज्या योगादि विधि संग्रह, पृ. 57
(ख) श्री बृहद्योगविधि, पृ. 3-4 7. योगप्रवेश के दिन 'नंदी' हो तो प्रवेश क्रिया होने के पश्चात पुन: से प्रदक्षिणा
एवं ईर्यापथ प्रतिक्रमण- ये दो क्रियाएँ करने की जरूरत नहीं रहती है। 8. एक प्राचीन प्रत में 'उद्देसावणी नंदीकट्ठावणियं' ऐसा पाठ है। 9. विधिमार्गप्रपा- सानुवाद, पृ. 133-134 10. आचारदिनकर में मुखवस्त्रिका प्रतिलेखित कर द्वादशावर्त वन्दन का उल्लेख है।
पृ. 92 11. विधिमार्गप्रपा की समाचारी में तीन बार एवं तपागच्छ आदि परम्परा में दो बार
'उद्दिटुं' शब्द कहने का सूचन है। 12. विधिमार्गप्रपा-सानुवाद, पृ. 133 13. वही, पृ. 134 14. वही, पृ. 134 15. विधिमार्गप्रपा-सानुवाद, पृ. 133-134 16. आचारदिनकर, 91-92 17. श्री बृहद्योगविधि, पृ. 8-11 18. विधिमार्गप्रपा-सानुवाद, पृ. 134 __19. आचारदिनकर, पृ.92
20. श्री प्रव्रज्या योगादि विधि संग्रह, पृ. 59 21. श्री बृहद्योगविधि, पृ. 10