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________________ 292... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण तीसरा कृतिकर्म - उपर्युक्त विधि पूर्वक स्वाध्याय करते हुए सूर्योदय होने में दो घड़ी शेष रह जाएं तब स्वाध्याय का इस विधि से समापन करें सबसे पहले पूर्ववत विज्ञापन पाठ बोलें। इसमें 'प्रतिष्ठापन' के स्थान पर 'निष्ठापन' शब्द का प्रयोग करें। फिर पूर्ववत भूमि नमस्कार, तीन आवर्त्त एवं एक शिरोनति कर सामायिक दण्डक पढ़ें। फिर तीन आवर्त्त, एक शिरोनति कर 27 श्वासोश्वास का कायोत्सर्ग करें। पुनः भूमि नमस्कार, तीन आवर्त्त, एक शिरोनति कर चतुर्विंशतिस्तव बोलें। फिर से तीन आवर्त्त, एक शिरोनति कर लघु श्रुतभक्ति पढ़ें। तदनन्तर पूर्व निर्धारित स्थान का प्रमार्जन करते हुए स्थापनीय शास्त्र को वन्दन पूर्वक उचित आसन पर प्रतिष्ठित करें। 110 विशेष- यह स्वाध्याय विधि अपर रात्रि ( रात्रि का अन्तिम प्रहर) की अपेक्षा से कही गई है। शेष पूर्वाह्न, अपराह्न एवं पूर्वरात्रि इन तीन काल में स्वाध्याय का प्रारम्भ एवं समापन करते समय उपर्युक्त विधि ही की जाती है। केवल अपर रात्रि के स्थान पर उस-उस काल के नाम लेने चाहिए। प्रत्येक कृतिकर्म में दो अवनति, बारह आवर्त्त, चार शिरोनति, प्रतिज्ञापाठ, सामायिक दण्डक, चतुर्विंशतिस्तव, लघु श्रुतभक्ति और आचार्य भक्ति इस तरह पाँच पाठ एवं तीन प्रकार के शारीरिक कृत्य किये जाते हैं। इस विधि में कुल तीन कृतिकर्म होते हैं। उनमें दो कृतिकर्म स्वाध्याय स्थापना के समय एवं एक कृतिकर्म स्वाध्याय समापन के समय किया जाता है। भगवान महावीर के शासन में योग्यता और मर्यादा के अनुसार श्रुताभ्यास की अनुमति दी गई है। श्रुतार्जन काले विणये. आदि आठ मर्यादा रूप आचार हैं। उसमें आगम अभ्यास के लिए चौथी मर्यादा उपधान-योगोद्वहन की है। मर्यादा रहित श्रुत पढ़ने से आराधना के स्थान पर विराधना होती है। जैन शासन में आराधना की अपेक्षा विराधना से बचने का महत्त्व अधिक है अतः अस्वाध्याय काल में स्वाध्याय नहीं करना चाहिए । योगोद्वहन ज्ञानाचार का साक्षात प्रयोग है। जैन वाङ्मय में ज्ञान का मूल्य नहीं है, ज्ञानाचार का मूल्य है। जिस ज्ञान के द्वारा मोहनीय कर्म का क्षय हो, सत्य-असत्य का विवेक हो और कर्म बंध के हेतुओं से विरति हो ऐसे ज्ञानयुक्त की मूल्यवत्ता है अन्यथा ज्ञान मात्र बुद्धि का श्रम है। यदि ज्ञान का सही उपयोग न किया जाये तो मोहनीय कर्म का बंध होता है, अन्यथा मोहनीय कर्म का
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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