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योगोद्वहन सम्बन्धी विविध विधियाँ ...291 अपररात्रि सम्बन्धी चार स्वाध्याय कालों के तीन-तीन कृतिकर्म इस प्रकार 4 x 3 = 12 कृतिकर्म हुए। एक कृतिकर्म रात्रि योग प्रतिष्ठापन सम्बन्धी और एक कृतिकर्म रात्रि योग निष्ठापन सम्बन्धी इस प्रकार 6 + 8 + 12 + 2 = 28 कृतिकर्म होते हैं, जो मुनि एवं आर्यिकाओं के लिए अवश्य करणीय है।
यहाँ कृतिकर्म का वर्णन स्वाध्याय विधि का सम्यक बोध करवाने के उद्देश्य से किया गया है।109 ___अब स्वाध्याय स्थापना विधि कहते हैं- धवला टीका के अनुसार सर्वप्रथम क्षेत्र की शुद्धि करें। उसके बाद हाथ और पैरों की शुद्धि करें। तदनन्तर विशुद्ध मन से युक्त होते हुए निर्जीव भू-भाग में उपस्थित हो जाएं। फिर निम्न विधि से तीन कृतिकर्म (वंदन) करें- पहला कृतिकर्म- सबसे पहले विज्ञापन पाठ द्वारा प्रतिज्ञा करें।
विज्ञापन- अथ अपर-रात्रि स्वाध्याय प्रतिष्ठापन-क्रियायां पूर्वाचार्यानुक्रमेण सकल-कर्म-क्षयार्थं भाव-पूजा-वन्दना-स्तव-समेतं श्री श्रुतभक्ति कायोत्सर्ग कुर्वेऽहं। फिर भूमि स्पर्श करते हुए नमस्कार करें, फिर तीन आवर्त और एक शिरोनति करके सामायिक दण्डक पढ़ें।
फिर तीन आवर्त्त, एक शिरोनति कर 26 श्वासोश्वास पूर्वक कायोत्सर्ग करें। तत्पश्चात भूमि तल का स्पर्श करते हुए नमस्कार करके पुनः तीन आवर्त और एक शिरोनति करें, फिर चतुर्विंशतिस्तव पढ़ें।
तदनन्तर तीन आवर्त और एक शिरोनति करके श्रुतभक्ति पढ़ें।
दूसरा कृतिकर्म- उसके बाद पूर्ववत विज्ञापन पाठ पढ़ें। इस पाठ में 'श्रुतभक्ति' के स्थान पर 'आचार्य भक्ति' शब्द बोलें।
फिर पूर्ववत भूमि नमस्कार कर, तीन आवर्त और एक शिरोनति करके सामायिक दण्डक पढ़ें। पुन: तीन आवर्त्त, एक शिरोनति कर 27 श्वासोश्वास पूर्वक कायोत्सर्ग करें। पुन: भूमि नमस्कार, तीन आवर्त और एक शिरोनति करके चतुर्विंशतिस्तव पढ़ें। पुन: तीन आवर्त और एक शिरोनति कर आचार्य भक्ति पढ़ें। ____ इस प्रकार चौबीस आवर्त्त, आठ शिरोनति, चार अवनति पूर्वक दो कृतिकर्म सम्पन्न कर वाचना ग्रहण करें। तत्पश्चात कांख आदि स्व अंगों का स्पर्श न करते हुए सम्यक विधिपूर्वक अध्ययन करें।