SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 348
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 290... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण दूसरा अन्तर आलापक पाठों एवं शब्द विन्यास को लेकर है। खरतर परम्परा के आलापक पाठ प्राकृत भाषाबद्ध हैं जबकि तपागच्छ आम्नाय के पाठ प्राकृत एवं गुजराती मिश्रित हैं। तीसरा मतभेद मुखवस्त्रिका प्रतिलेखन एवं वन्दन सम्बन्धी है। खरतर परम्परा में एक बार द्वादशावर्त्तवन्दन करने का निर्देश है जबकि तपागच्छ परम्परा में द्वादशावर्त्तवन्दन का दो बार उल्लेख किया गया है तथा प्रारम्भ में मुखवस्त्रिका प्रतिलेखन का सूचन है। चौथा भेद चैत्यवंदन-देववंदन विधि से सम्बन्धित है। खरतरगच्छ आम्नाय में 18 स्तुतियों पूर्वक देववंदन का विधान है। कुछ परम्पराओं में शक्रस्तव मात्र करने की आचरणा है तथा तपागच्छ सामाचारी में निर्धारित चैत्यवंदन के साथ जयवीयराय तक सूत्रपाठ बोलने की परम्परा है। 108 स्वाध्याय प्रतिष्ठापन - निष्ठापन विधि दिगम्बर मतानुसार किसी भी सूत्रागम का प्रारम्भ एवं समापन करना हो, तो उसकी निम्न विधि है - स्वाध्याय के प्रारम्भ एवं समापन में मुख्य रूप से कृतिकर्म किया जाता है। अतः जिन अक्षर समूहों से या जिन परिणामों से अथवा जिन क्रियाओं से आठ प्रकार के कर्मों का छेदन हो, वह कृतिकर्म है अथवा अरिहन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु, जिनचैत्य, जिनप्रतिमा, धर्मशास्त्र आदि ( नव देवता) की वन्दना करते समय जो क्रिया की जाती है वह कृतिकर्म कहलाता है । दिगम्बर आम्नाय में मुनियों की दैनन्दिन क्रियाएँ जैसे भिक्षाग्रहण, निषद्यासन, स्वाध्याय, कायोत्सर्ग एवं भक्तिपाठ आदि कृतिकर्म द्वारा सम्पन्न की जाती है। कृतिकर्म में दो बार अवनति (भूमिस्पर्शयुक्त नमस्कार), बारह आवर्त्त, चार शिरोनति पूर्वक सामायिकस्तव, कायोत्सर्ग एवं चतुर्विंशतिस्तव पाठ बोला जाता है। दिगम्बर मुनियों के लिए अहोरात्र में अट्ठाईस कृतिकर्म माने गये हैं जैसेएक काल की सामायिक में चैत्य भक्ति एवं पंचगुरु भक्ति सम्बन्धी दो कृतिकर्म (कायोत्सर्ग) होते हैं। अतः पूर्वाह्न, मध्याह्न एवं अपराह्नकाल की अपेक्षा 3 x2 = 6 कृतिकर्म हुए। एक काल सम्बन्धी प्रतिक्रमण में सिद्ध प्रतिक्रमण, निष्ठितकरण, वीर और चतुर्विंशति तीर्थंकर भक्ति जन्य चार कृतिकर्म होते हैं, दोनों काल के 4 × 2 = 8 कृतिकर्म हुए । पूर्वाह्न, अपराह्न, पूर्वरात्रि और
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy