________________
योगोद्वहन सम्बन्धी विविध विधियाँ... 289
काउस्सग्ग करूं? गुरु- करेह । शिष्य - 'इच्छं' कह योगनिखेवावणी... यावत करेमि काउस्सग्गं, अन्नत्थसूत्र बोलकर एक लोगस्स (सागरवरगंभीरा तक) का कायोत्सर्ग करें। पूर्णकर प्रगट में लोगस्ससूत्र कहें। उसके बाद शिष्य दो बार द्वादशावर्त्त वन्दन करें।
विगयग्रहण पृच्छा- फिर शिष्य - खमा. इच्छा. संदि. भगवन्! पवेयणुं पवेडं ? गुरु- पवेयह । शिष्य - इच्छं । शिष्य - खमा इच्छाकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री योग निखेवावणी परिमित विगइ विसर्जावणी पाली पारणं करशुं ? गुरु- करजो। शिष्य- इच्छं । शिष्य- खमा. इच्छा. भगवन् पसाय करी पच्चक्खाण करावेह | गुरु- शिष्य की इच्छानुसार एकासना - बीयासना आदि का प्रत्याख्यान करवायें। शिष्य - खमा इच्छा. भगवन् तुम्हे अम्हं परिमित विंगइ विसर्जु ? गुरु - विसर्जी । शिष्य - इच्छं । शिष्य - खमा. इच्छा. भगवन् तुम्हें अम्हं परिमित विगइ विसर्जावणी काउस्सग्ग करूं? गुरुकरेह | शिष्य 'इच्छं' कह परिमित विगइ विसर्जावणी करेमि काउस्सग्गं, अन्नत्थसूत्र बोलकर एक नमस्कार मन्त्र का कायोत्सर्ग करें। पूर्णकर प्रकट में नमस्कार मन्त्र बोलें। फिर दो खमासमण द्वारा 'बइसणं' का आदेश लें। अविधिअविनय का मिथ्यादुष्कृत दें।
समीक्षा - प्रस्तुत अध्याय में योगनिक्षेप सम्बन्धी तीन विधियाँ उल्लिखित की गई हैं। प्रथम खरतरगच्छ परम्परानुसार, द्वितीय विक्रम की 14वीं शती में प्रचलित विशिष्ट परम्परानुसार और तृतीय तपागच्छ आदि परम्परानुसार बतलाई गई है। यदि इन परम्पराओं को आधार बनाकर तुलनात्मक अध्ययन किया जाए तो मूलस्वरूप में लगभग समानता परिलक्षित होती है। विशेष अन्तर क्रमविधि को लेकर ही कहा जा सकता है जैसे
खरतरगच्छ सामाचारी के अनुसार योगनिक्षेपविधि का क्रम यह हैनिवेदन, वासदान, देववंदन, प्रत्याख्यान और कायोत्सर्ग ।
कुछ परम्पराओं के अनुसार योगनिक्षेप का क्रम निम्न है - निवेदन, कायोत्सर्ग, चैत्यवंदन और प्रत्याख्यान।
तपागच्छ सामाचारी के अनुसार योगनिक्षेप का क्रम इस प्रकार हैवसतिशुद्धि, निवेदन, वासग्रहण, चैत्यवंदन, कायोत्सर्ग, प्रत्याख्यान, विगयग्रहण और कायोत्सर्ग ।