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________________ 288... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण वंदावेमि। फिर एक खमासमण देकर सभी मुनिजन शक्रस्तव बोलें। उसके बाद योग निक्षेप करने वाले मुनि द्वादशावर्त्तवन्दन देकर कहें- 'पवेयणं पवेयहपडिपुण्णा विगइ, पारणउं करउं। गुरु कहें- करेह। तदनन्तर गुरु मुख से विगय ग्रहण का प्रत्याख्यान धारण करें। फिर गुरु को वंदन कर उनके पाँवों की शुश्रुषा करें तथा योगोद्वहन करते हुए अविधिआशातना हुई हो तो मन-वचन-काया की शुद्धिपूर्वक मिच्छामि दुक्कडं दें। योगोद्वहन काल में सहवर्ती ज्येष्ठ साधुओं को भी वन्दन कर उनसे क्षमायाचना करें।107 तपागच्छ आदि परम्पराओं में योगनिक्षेप विधि किंचिद अन्तर के साथ इस प्रकार प्रचलित है सर्वप्रथम गुरु के समीप आयें, स्थापनाचार्य को खुला करें, फिर चारों दिशाओं में एक-एक नमस्कार मन्त्र का स्मरण करते हुए और गुरु को नमस्कार करते हुए स्थापनाचार्य की तीन प्रदक्षिणा दें। फिर ईर्यापथिक प्रतिक्रमण करें। तदनन्तर___ वसतिशुद्धि- शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भगवन्! वसति पवेडे? गुरुपवेयह। शिष्य- इच्छं कहें। शिष्य- खमा. भगवन्! सुद्धा वसहि। गुरु- तहत्ति कहें। शिष्य- खमा. इच्छा. संदि. भगवन्! मुहपत्ति पडिलेहुँ? गुरुपडिलेहेह। शिष्य- इच्छं कह मुखवस्त्रिका का प्रतिलेखन करें। निवेदन- शिष्य- खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री... योगं निक्खेवह। गुरु- निक्खेवामि। शिष्य- इच्छं। वासग्रहण- शिष्य- खमा. इच्छकारी भगवन् तुम्हे अम्हं श्री योगनिखेवावणी (नंदिकरावणी) वासनिक्षेपं करेह। गुरु- करेमि। शिष्यइच्छं। गुरु तीन नमस्कार मन्त्र गिनकर शिष्य के सिर पर वासदान करें। चैत्यवंदन- शिष्य- खमा. इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री योगनिखेवावणी (नंदिकरावणी) वासनिक्षेपकरावणी देव वंदावेह। गुरुवंदावेमि। शिष्य- इच्छं। फिर गुरु और शिष्य 'ॐ नम: पार्श्वनाथाय' से लेकर 'जयवीयराय सूत्र' तक चैत्यवंदन करें। कायोत्सर्ग- शिष्य- खमा. इच्छाकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं श्री योगनिखेवावणी (नंदिकरावणी) वासनिखेवकरावणी देववंदावणी
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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