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________________ योगोद्वहन सम्बन्धी विविध विधियाँ ... 285 आदेश ले सकते हैं। उपवासी योगवाही को तो कभी भी ( 15 दिन के नियम के बिना भी) प्रतिमास 1 दिन पाली पलटकर नीवि करने मिलती है । यद्यपि एक महीने में कितने भी उपवास किए हों लेकिन उपवासी मुनि को पाली पलटना एक बार ही मिलता है। इस सम्बन्ध में यह नियम भी मान्य है कि पहली बार जब भी 'पाली पलटुं' विधि की जाती है। दुबारा 15 दिनों के बाद ही तप क्रम में परिवर्तन कर सकते हैं, उससे पहले नहीं। इस विषय में यह भी जानने योग्य है कि किसी योगवाही के एक मास की पाली पलटने की बाकी हो तो दूसरे मास में उसे दो पाली पलटने मिलती है लेकिन संलग्न तीन दिन नीवियाँ करने नहीं मिलती है। तपागच्छ सामाचारी में उपधान तप में भी पालीपलटुं की परम्परा है जैसेपंचमी को आयंबिल, छठ को नीवि, सप्तमी को आयंबिल आ रहा हो तो अष्टमी को भी आयंबिल करना अनिवार्य है। यदि दो आयंबिल एक साथ आ रहे हों तो भी अष्टमी के दिन आयंबिल ही करना चाहिए, नीवि नहीं । सम्भवतया शारीरिक असमर्थता और मानसिक दुर्बलता के कारण पाली पलटुं का विधान किया गया है। इससे अशक्त एवं रुग्ण योगवाहियों के चित्त में धैर्य बंधा रहता है तथा लगातार दो दिन नीवि करने से पर्याप्त मात्रा में पौष्टिक बल भी प्राप्त हो जाता है। जो योगवाही दौर्बल्यता या रुग्णता के कारण तपसाधना को पूर्ण करने में भयभीत हों, वे तपदिन के अनुपात से दिन पूर्णाहुति के कुछ समय पहले भी यथोचित संख्या में आयंबिल पूर्ण कर सकते हैं। इस तरह सिद्ध होता है कि ‘पाली पलटु' योग तप की सहयोगी विधि है । जीत परम्परा के अनुसार पालीपलटुं विधि निम्न प्रकार है जिस दिन पालीपलटुं करना हो उस दिन सर्वप्रथम वसति के चारों ओर सौ-सौ कदम पर्यन्त भूमि की शुद्धि करें। फिर स्थापनाचार्य को खुला करें। फिर स्थापनाचार्य के समक्ष ईर्यापथिक प्रतिक्रमण करें। फिर वसति प्रवेदन के दो आदेश लें। फिर योगवाही एक खमासमण पूर्वक वंदन करके कहें- इच्छा. संदि. भगवन्! पवेयणा मुहपत्ति पडिलेहुं? गुरु- पडिलेहेह । शिष्य- इच्छं. कह मुखवस्त्रिका का प्रतिलेखन कर द्वादशावर्त्त करें। फिर खड़े-खड़े ही बोलेइच्छा. संदि. भगवन्! पवेणुं पवेडं ? फिर एक खमासमण पूर्वक कहें- इच्छा. संदि. भगवन्! पाली पालटुं ? गुरु- पालटो । शिष्य- इच्छं ।
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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