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________________ 284... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण पाली पालटवानी (तप क्रम परिवर्तन की) विधि पाली का शाब्दिक अर्थ है- पंक्ति। योगवहन सम्बन्धी अर्वाचीन कृतियों में इस विषयक तीन शब्द मिलते हैं____पाली तप कर\- जिस क्रम पूर्वक तप किया जा रहा हो, उसी क्रम से तप करूँगा, ऐसा आदेश लेना। ___पाली पारणुं करशुं- जिस क्रम से आयंबिल आदि तप चल रहा था, अब उसे पूर्ण करता हूँ अर्थात आयंबिल आदि तप का पारणा करता हूँ, अब मुझे विगय सेवन करने की छूट है। पाली पलटी पारणुं करशुं- एक नीवि के बाद दूसरे दिन भी नीवि करनी हो तो दूसरे दिन ‘पाली पलटी पारणं करशं' का आदेश मांगकर नीवि कर सकते हैं। ऐसा एक महीने में सामान्यत: एक बार ही हो सकता है। यह आदेश लेने पर दो नीवियाँ एक साथ मिलती हैं। उपवास करने वाले को भी एक पाली एक्स्ट्रा मिलती है अथवा दो दिन नीवि का प्रत्याख्यान होता है। कुछ आचार्यों के अनुसार योगवहन काल में आयंबिल-नीवि, आयंबिल-नीवि इस क्रम से तप प्रत्याख्यान होता है और कुछ आचार्यों के अभिमत से अंगसूत्र या श्रुतस्कन्ध के उद्देश एवं अनुज्ञा दिन तथा भगवतीसूत्र के कुछ दिन और महानिशीथ आदि सूत्रों को छोड़कर शेष सूत्रों के अध्ययन के दिनों में नीवि तप होता है। इसलिए ‘पाली पलटुं' के समय आयंबिल और नीवि तप के प्रत्याख्यान में ही परिवर्तन किया जाता है। इन दिनों उपवास और एकासना तप का प्रत्याख्यान लगभग नहीं होता है। यह योग विधि आयंबिल और नीवि तप के आधार पर वहन होती है। श्रीरामचन्द्रसूरि समुदायवर्ती पूज्य कीर्तियशसूरीश्वरजी म.सा. एवं उनके शिष्यरत्न पूज्य रत्नयशविजयजी म.सा. से हुई चर्चा के अनुसार योगवाही को पालीपलटुं (क्रम परिवर्तन) की यह विधि विशेष परिस्थिति में प्राप्त होती है, तब वह आयंबिल के दिन नीवि तप कर सकता है और यह तप गिनती में भी आता है। • परम्परागत मान्यता के अनुसार योग तप का प्रारम्भ करने के न्यूनतम 15 दिनों के बाद 16वें दिन से लेकर 30 दिनों तक किसी भी दिन (बड़ी तिथियाँ छोड़कर) पाली पलटने की विधि की जा सकती है यानी एक साथ दो नीवि का
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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