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________________ योगोद्वहन सम्बन्धी विविध विधियाँ ...283 • जब दंडधर अपने स्थान पर आ जाएं, तब कालग्राही कालग्रहण के लिए गुरु के साथ स्थापनाचार्य के समीप पहुँचें। अपने स्थान से स्थापनाचार्य के निकट जाते हुए तीन बार 'निसीहि-निसीहि-निसीहि नमो खमासमणाणं' बोलते हुए नमस्कार करें। फिर ईर्यापथ प्रतिक्रमण करें, नमस्कार मन्त्र का कायोत्सर्ग करें। फिर स्थापनाचार्य को वंदन करें। तदनन्तर प्रादोषिक काल ग्रहण करने के लिए गुरु से आदेश लें। प्रादोषिक काल ग्रहण की विधि निम्न है जब संध्या कुछ शेष रह जाए तब कालग्राही उत्तराभिमुख होकर बैठें और दंडधर पूर्वाभिमुख होकर बैठें। अपने दंड को थोड़े से अंतराल पर रखें। फिर कालग्राही और दंडधर दोनों ही कालग्रहण के निमित्त आठ श्वासोश्वास परिमाण नमस्कार मन्त्र का चिंतन कर कायोत्सर्ग पूर्ण करें। फिर प्रकट में चतुर्विशतिस्तव बोलें। उसके पश्चात दशवैकालिकसूत्र का प्रथम अध्ययन, द्वितीय अध्ययन और तृतीय अध्ययन की पहली गाथा ऐसी कुल 17 गाथाओं का मन में स्मरण करें। यह विधि एक दिशा की अपेक्षा से जाननी चाहिए। शेष तीनों दिशाओं में भी इसी प्रकार की विधि करें। कालग्रहण लेने के पश्चात दंडधर उसी काल भूमि में बैठ जाएं। कालग्राही विधिपूर्वक मूल वसति में आएं, जहाँ गुरु विराज रहे हों। यहाँ उल्लेखनीय है कि जो विधि वसति से कालभूमि पर जाने की कही गई है वही विधि कालभूमि से वसति में आने के लिए भी की जाती है। इसमें जो भी भिन्नताएँ हैं, उनका उल्लेख कालवध के कारणों के साथ किया जाएगा। सामान्यतया कालमंडल भूमि से उपाश्रय में आकर ईर्यापथिक प्रतिक्रमण करें। फिर ‘काल शुद्ध है' ऐसा गुरु से निवेदन करें। उसके पश्चात सभी एक साथ स्वाध्याय की प्रस्थापना करें। • यहाँ कालप्रतिलेखना विधि प्रादोषिक काल की अपेक्षा बताई गई है, शेष तीनों कालों सम्बन्धी प्रतिलेखना भी इसी विधिपूर्वक समझनी चाहिए। काल प्रतिलेखना से तात्पर्य चारों दिशाओं का अवलोकन करना है तथा काल ग्रहण से तात्पर्य दिशाओं में किसी तरह का व्याघात न होने पर तात्कालिक स्वाध्याय हेतु उन दिशाओं को ग्रहण करना है। ___ • जिस दिन बिना किसी व्याघात के शुद्धविधि पूर्वक कालग्रहण ले लिया जाए तो उसके पश्चात स्वाध्याय की प्रस्थापना करके स्वाध्याय प्रारम्भ करते हैं।103
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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