SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 340
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 282... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण किया जाता है। कालप्रेक्षक मनि उन्हीं के समक्ष सभी कछ निवेदन करते हैं। यदि व्याघात स्थिति न हो तो कालप्रेक्षक मुनि गुरु से सब कुछ पूछते हैं जैसेहम स्वाध्याय काल को ग्रहण करेंगे, स्वाध्याय प्रवृत्ति में संलग्न रहेंगे आदि। यह कालप्रेक्षा की पीठिका रूप विधि प्रस्तुत की गई है। • यदि निर्व्याघात की स्थिति हो, तो सर्वप्रथम गुरु या आचार्य को द्वादशावर्त वंदन करें। फिर कालग्रहण की अनुमति लेकर कालभूमि में जाएं। यदि उस भूमि में गाय अथवा सर्प आदि हों तो काल ग्रहण न करें। यदि भूमि उक्त दोषों से रहित हो तो कालग्रहण वेला की प्रतीक्षा करते हुए कालप्रेक्षक बैठ जाएं। दोनों दो-दो दिशाओं का निरीक्षण करते हुए बैठे रहें। कालप्रेक्षक मुनि दिशाओं का निरीक्षण करते समय स्वाध्याय का चिंतन न करें। यदि एकाग्रचित्त से दिशावलोकन करते हए बन्दर की हँसी के समान व्यन्तरादि की आवाज सुन ली जाए, विद्यत देख लिया जाए, अथवा उल्का को गिरते हुए देख लिया जाए तो कालवध होता है। कालवध होने के पश्चात उस दिन काल ग्रहण नहीं किया जाता है। • कालग्रहण (कालप्रेक्षा) हेतु इस नियम का ध्यान रखा जाए कि संध्या रहते काल-प्रेक्षा का क्रम प्रारम्भ किया गया हो तथा कालग्रहण और सन्ध्या दोनों एक साथ समाप्त होते हों तो काल वेला की तुलना करें अथवा उत्तर आदि तीनों दिशाओं की संध्या देखें। यदि दक्षिण दिशा की सन्ध्या समाप्त हो गई हो अर्थात दक्षिण दिशा में अंधकार छा गया हो, तो भी उस दिशा को स्वाध्याय हेतु ग्रहण कर सकते हैं। • तदनन्तर कालवेला का जानकार दंडधारी मुनि अपने स्थान से उठे और उपाश्रय में जाकर निवेदन करें कि अभी स्वाध्याय प्रारम्भ करने में समय शेष है। इसलिए सभी मौन हो जाएं। यहाँ दंडधारी की घोषणा उद्घोषक दृष्टांत के समान जाननी चाहिए। जैसे गंडक उद्घोषणा करता है और यदि बहत सारे लोग उसकी घोषणा को सुन नहीं पाए तो दंड का भागी गंडक होता है और यदि उस घोषणा को थोड़े लोग नहीं सुन पाएं तो न सुनने वाले दंड के भागी होते हैं। इसी प्रकार कालप्रेक्षक दंडधर मुनि की बात यदि बहुत सारे साधुओं ने नहीं सुनी हो तो दंडधर मुनि दंड का भागी होता है और यदि थोड़े साधुओं ने नहीं सुनी हो तो नहीं सुनने वाले साधु दंड के भागी होते हैं। इसलिए दंडधर सम्यक उच्चारण पूर्वक काल निवेदन करें। तत्पश्चात दंडधर अपने स्थान पर चले जाएं।
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy