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योगोद्वहन सम्बन्धी विविध विधियाँ... 279
• परम्परागत सामाचारी के अनुसार एक कालग्रहण लिया हो तो कालप्रवेदन के तुरन्त बाद एक स्वाध्याय प्रस्थापना करनी चाहिए और दो कालग्रहण लिए हों तो दो स्वाध्याय की प्रस्थापना करनी चाहिए। इसके बाद उस अनुष्ठान सम्बन्धी क्रिया करनी चाहिए | 99
• अनुष्ठान क्रिया करने से पहले स्वाध्याय प्रस्थापना करनी हो तो स्वाध्याय अनुष्ठान की क्रिया कराने वाले आचार्य आदि को भी स्वाध्याय प्रस्थापना करनी चाहिए।
• अनुष्ठान करते समय एक काल ग्रहण किया हो तो अनुष्ठान के पहले एक स्वाध्याय और अनुष्ठान के पश्चात दो स्वाध्याय की प्रस्थापना करनी चाहिए। तदुपरान्त तीन-तीन बार पाटली स्थापना करनी चाहिए। यदि अनुष्ठान करते समय दो काल ग्रहण किए हों तो अनुष्ठान क्रिया के पहले दो स्वाध्याय और अनुष्ठान क्रिया के बाद एक स्वाध्याय ऐसे तीन स्वाध्यायों की प्रस्थापना करनी चाहिए। इसी तरह तीन बार पाटली स्थापना करनी चाहिए। तत्पश्चात दो बार स्वाध्याय प्रस्थापना और दो बार पाटली स्थापना करनी चाहिए।
• कालग्रहण, स्वाध्याय प्रस्थापना और पाटली स्थापना का क्रम इस प्रकार है- रात्रि सम्बन्धी (वैरात्रिक- प्राभातिक) दो कालग्रहण लिए हों तो दो बार स्वाध्याय प्रस्थापना करें। फिर अनुष्ठान विधि करें। उसके बाद एक स्वाध्याय प्रस्थापना करके तीन बार पाटली स्थापना करें। तीसरी पाटली के समय व्याघातिक काल का आदेश माँगे। तदनन्तर दो बार स्वाध्याय प्रस्थापना और दो बार पाटली स्थापना करें। दूसरी पाटली के समय अर्द्धरात्रि काल का आदेश मांगे।
प्रभातकाल में दो कालग्रहण लिए हों तो दो बार स्वाध्याय प्रस्थापना करके अनुष्ठान क्रिया करें, फिर एक स्वाध्याय प्रस्थापना कर तीन बार पाटली स्थापना करें। तीसरी पाली में वैरात्रिक और अन्त की दो पाटली में प्राभातिक काल की अनुमति लें। इस प्रकार एक कालग्रहण में तीन बार स्वाध्याय प्रस्थापना और तीन बार पाटली स्थापना की जाती है। दो कालग्रहण में पाँच बार स्वाध्याय प्रस्थापना और पाँच बार पाटली स्थापना की जाती है । व्याघातिक काल और अर्द्धरात्रिक काल सम्बन्धी क्रिया, स्वाध्याय प्रस्थापना और पाटली क्रिया रात्रि में ही कर ली जाती है। दिन या रात्रि में यदि एक- एक काल का ग्रहण किया हो तो तीन-तीन बार स्वाध्याय प्रस्थापना और पाटली स्थापना की जा सकती है।