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278... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण
स्वाध्याय भंग हो जाये तो वह दूसरी पाटली लेकर फिर से स्वाध्याय प्रस्थापन क्रिया करें।
• प्रभातकाल में वैरात्रिक और प्राभातिक दोनों काल की स्वाध्याय प्रस्थापना करनी हो तो अनुष्ठान कराने वाले आचार्यादि दोनों काल के बीच प्राभातिक काल सम्बन्धी एक ही स्वाध्याय प्रस्थापना करें, यदि व्याघातिक और अर्द्धरात्रिक काल की स्वाध्याय प्रस्थापना करनी हो तो दोनों काल की पृथकपृथक स्वाध्याय प्रस्थापना करें।
व्यवहारभाष्य के मतानुसार जो मनि स्वाध्याय प्रस्थापना के समय उपस्थित रहते हैं उनके लिए ही गृहीत काल शुद्ध माना जाता है और जो उपस्थित नहीं होते हैं उनके लिए वह काल शुद्ध नहीं होता है। जिन योगवाहियों का काल शुद्ध रूप से ग्रहण नहीं होता वे उस अशुद्ध काल में नया पाठ या वाचन आदि स्वाध्याय नहीं कर सकते हैं। इसका कारण बताते हए भाष्यकार कहते हैं कि जो समुदाय में सम्मिलित नहीं होता, उसे भाग नहीं दिया जाता है। इसी प्रकार स्वाध्याय की प्रस्थापन वेला में जो प्रमादी मुनि सम्मिलित नहीं होते, उन्हें उस कालग्रहण का लाभ नहीं देना चाहिए।
• एक या दो मुनियों को अस्वाध्याय सम्बन्धी शंका हो तो स्वाध्याय किया जा सकता है, किन्तु तीन मुनियों को शंका हो तो स्वाध्याय नहीं किया जाना चाहिए। स्वगण में शंका उत्पन्न होने पर परगण में जाकर नहीं पूछना चाहिए, क्योंकि जहाँ अस्वाध्याय होता है वहीं शंका होती है। स्थान की भिन्नता के कारण परगण में वह न भी हो। इसका भावार्थ यह है कि स्वाध्याय प्रस्थापना के समय दंडधर द्वारा पूछे जाने पर किसी एक-दो मुनि को विद्युत गर्जना, छींक, कलह आदि रूप व्याघात होने की शंका हो तो काल शुद्ध मानकर स्वाध्याय किया जा सकता है,परन्तु तीन आदि साधुओं को उक्त शंका होने पर स्वाध्याय नहीं किया जाता है। मन की शंका के निवारणार्थ समीपवर्ती अन्य गणों में पूछने हेतु भी नहीं जाना चाहिए, क्योंकि अस्वाध्याय का कारण उपस्थित रहने पर ही शंका होती है। अत: उस समय स्वाध्याय का परिहार करना उचित है।97
• आचार्य वर्धमानसूरि के निर्देशानुसार कालिक योगवाही को प्रतिदिन प्रभातकाल में कालग्रहण की दो घड़ी और प्रतिलेखना की दो घड़ी छोड़कर दोदो मुहूर्त के दो स्वाध्यायों की प्रस्थापना करनी चाहिए।98