________________
योगोद्वहन सम्बन्धी विविध विधियाँ ...275 पूर्ववत पाटली के ऊपर मुखवस्त्रिका एवं एक दंडी रखें। दूसरी दंडी पाटली की बायीं तरफ रखें। फिर बैठे हुए एक नमस्कार मन्त्र से पाटली और एक नमस्कार मन्त्र से बायीं तरफ रखी गई दंडी की स्थापना करें, फिर खड़े होकर एक नमस्कार मन्त्र से पाटली की स्थापना करें।
निवेदन- तत्पश्चात एक खमासमण देकर मुखवस्त्रिका का प्रतिलेखन कर द्वादशावर्त वन्दन करें।
फिर खमा. इच्छा. संदि. सज्झाय संदिसाहं? इच्छं। पुन: खमा. इच्छा. संदि. सज्झाय पठाउं? इच्छं।
फिर सज्झाय पट्ठावणियं करेमि काउस्सग्गं पूर्वक अन्नत्थसूत्र एक नमस्कार मन्त्र का कायोत्सर्ग, लोगस्ससूत्र, दशवैकालिकसूत्र की 17 गाथा, पुनः एक नमस्कार मन्त्र का कायोत्सर्ग करें। फिर द्वादशावर्त्तवन्दन तक की विधि पूर्ववत करें। फिर खड़े होकर इच्छा. संदि. सज्झाय पवे? इच्छं, खमा. इच्छकारी साहवो सज्झाय सुज्झे? सभी योगवाही कहें- सुज्झे। योगवाही शिष्य- भगवन्! मु सज्झाय शुद्ध। खमा. इच्छा. संदि. भगवन्! सज्झाय करूँ? इच्छं। नीचे बैठकर एक नमस्कार मन्त्र पूर्वक दशवैकालिकसूत्र की पाँच गाथा बोलें। फिर दो खमासमण पूर्वक बैठने का आदेश लें। अविधि एवं आशातना का मिच्छामि दुक्कड़ दें। एक नमस्कार मन्त्र गिनकर पाटली का उत्थापन करें।91
समीक्षा- स्वाध्यायप्रस्थापना कालिकसूत्रों के योग का एक आवश्यक अनुष्ठान है। यदि इस अनुष्ठान की प्राचीनता के सम्बन्ध में विचार करें तो विक्रम की दूसरी शती से 16वीं शती पर्यन्त के ग्रन्थों में इसका स्पष्ट उल्लेख मिलता है। व्यवहारभाष्य 2, तिलकाचार्य सामाचारी 3, सुबोधासामाचारी,94 विधिमार्गप्रपा,95 आचारदिनकर आदि इस विषय के प्रामाणिक ग्रन्थ हैं। यदि उक्त ग्रन्थों एवं प्रचलित परम्पराओं के परिप्रेक्ष्य में तुलनात्मक विवेचन किया जाए तो निम्न तथ्य दृष्टिगत होते हैं1. सामान्यतया इस अनुष्ठान को करते समय स्वाध्याय प्रारम्भ करने का निवेदन, अनुज्ञापन, प्रस्थापन, प्रवेदन और स्वाध्याय का प्रारम्भ- इतने चरण सम्पन्न किये जाते हैं। विधिमार्गप्रपा आदि विधि ग्रन्थों में परस्पर आलापक पाठ, वन्दन संख्या आदि को लेकर कुछ मतभेद हैं।