SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 334
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 276... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण 2. विधिमार्गप्रपा आदि ग्रन्थों में इस विधि को स्थापनाचार्य के समक्ष करने का उल्लेख है किन्तु स्थापनाचार्य खुले होने चाहिए, यह सूचन नहीं है जबकि तपागच्छ परम्परा में खुले स्थापनाचार्य रखने का प्रावधान है। 3. तिलकाचार्य सामाचारी,सुबोधा सामाचारी एवं विधिमार्गप्रपा के अनुसार वाचनाचार्य और योगवाही शिष्य द्वारा यह अनुष्ठान सम्पन्न किया जाता है। वहीं व्यवहारभाष्य में कालग्राही मुनि के द्वारा करने का उल्लेख है। आचारदिनकर में इस विषयक स्पष्ट निर्देश नहीं है, किन्तु अनुवादिका साध्वी मोक्षरत्ना जी ने कालग्राही या योगवाही मुनि का उल्लेख किया है। तपागच्छ परम्परा में योग की क्रिया महानिशीथ, नन्दी एवं अनुयोग सूत्रों के जोग किए हुए मुनि भगवन्त ही करवाते हैं। यहाँ वाचनाचार्य पद से इन मुनियों का ग्रहण है। अत: यह जरूरी नहीं है कि क्रियाकारक काल ग्राही मुनि ही हों। 4. विधिमार्गप्रपा एवं सुबोधा सामाचारी के मतानुसार इस अनुष्ठान में दो बार द्वादशावर्त वन्दन किया जाता है तथा तिलकाचार्य सामाचारी, आचार दिनकर एवं तपागच्छ की परम्परानुसार द्वादशावर्त वन्दन तीन बार किया जाता है। 5. विधिमार्गप्रपा आदि ग्रन्थों में स्वाध्याय प्रस्थापना के प्रारम्भ में पाटली स्थापन करने का उल्लेख नहीं है जबकि तपागच्छ आदि कुछ परम्पराओं में पाटली स्थापन विधि की जाती है। 6. उपर्युक्त ग्रन्थों में कतिपय आलापक पाठों को छोड़कर शेष स्वाध्याय प्रस्थापना विधि समान रूप से उल्लिखित हैं किन्तु आचार दिनकर में निम्न पाठ अतिरिक्त कहा गया है- स्वाध्याय प्रस्थापना की समग्र क्रिया पूर्ण करने के पश्चात कालमण्डल में जाकर मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना करें, फिर कालग्रहण की भाँति तीन बार कालमंडल की प्रतिलेखना करें, फिर ‘मण्डूक प्लुत' न्याय से मेंढक की तरह फुदकते हुए चलकर काल मण्डल में प्रवेश करें। स्वाध्याय प्रस्थापना प्रतिक्रमण विधि स्वाध्याय प्रस्थापना एवं गुरु मुख द्वारा स्वाध्याय करते समय लगे हुए दोषों से निवृत्त होना 'स्वाध्याय प्रस्थापना प्रतिक्रमण' कहलाता है। आगम सूत्रों
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy