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274... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण
सज्झाउ पाठविसहं'. प्रारम्भ करें।
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आप अनुमति दीजिए कि हम अमुक पाठ का स्वाध्याय
प्रस्थापन- फिर जितना शुद्ध हो सके उतना मौन पूर्वक (अन्तर मन से ) सज्झाय पट्टवणत्थं करेमि काउस्सग्गं कहकर अन्नत्थसूत्र पूर्वक एक नमस्कार मन्त्र का कायोत्सर्ग करें। कायोत्सर्ग पूर्णकर दोनों हाथों का संपुट बनाएं तथा रजोहरण एवं मुखवस्त्रिका को यथायोग्य धारण कर लोगस्ससूत्र का मौनपूर्वक पाठ करें। तदनन्तर दशवैकालिकसूत्र की प्रारम्भिक 17 गाथाओं का उच्चारण करें। फिर दोनों भुजाओं को लम्बा कर एक परमेष्ठी मन्त्र का कायोत्सर्ग करें। उसे पूर्णकर प्रकट में नमस्कार मन्त्र बोलें। तत्पश्चात वाचनाचार्य और योगवाही द्वादशावर्त्त वन्दन करें।
प्रवेदन - तदनन्तर एक खमासमण देकर कहें- इच्छाकारेण संदिसह सज्झाउ पवेयहं - आप स्वेच्छा से आज्ञा दीजिए कि हम स्वाध्याय काल की शुद्धि का प्रवेदन करें। पुनः एक खमासमण देकर कहें - इच्छाकारि तपसियहु सज्झाउ सूझइ? आप सभी योगवाहियों के लिए यह स्वाध्याय काल शुद्ध है? तब सभी योगवाही बोलें- सूझइ - शुद्ध है।
स्वाध्याय प्रारम्भ- फिर एक खमासमण देकर कहें- इच्छा. संदि. भगवन्! सज्झाय संदिसावेमि । पुनः एक खमासमण देकर कहें- इच्छा. संदि. भगवन्! सज्झाय करेमि ।
इतना कह दशवैकालिकसूत्र के प्रथम अध्ययन की पाँच गाथा पढ़ें। उसके पश्चात वाचनाचार्य कंबल के आसन पर और योगवाही शिष्य वर्षाऋतु हो तो काष्ठासन पर तथा ऋतुबद्ध काल हो तो पादपोंछन के आसन पर रजोहरण को स्थापित करें। फिर वाचनाचार्य एक खमासमण देकर कहें- इच्छाकारि तपसियहु दिट्टं सुयं - आप लोगों ने स्वाध्याय में विघ्न कारक कुछ देखा या सुना है ? सभी योगवाही बोलें- न किंचि । फिर स्वाध्याय प्रारम्भ करें।
तपागच्छ परम्परा में स्वाध्याय प्रस्थापना की निम्न विधि प्रचलित है- सर्व प्रथम वसति के चारों ओर सौ-सौ हाथ पर्यन्त भूमि का शोधन करें, फिर वसति के आभ्यन्तर भाग का प्रमार्जन करें, स्थापनाचार्य को खुला रखें, एक खमासमण देकर ईर्यापथिक प्रतिक्रमण करें।
पाटलीस्थापन- तदनन्तर नीचे बैठकर पाटली (25 बोल), मुखवस्त्रिका (25 बोल), दंडी (10 बोल) एवं तगड़ी की (4 बोल पूर्वक) प्रतिलेखना करें।