________________
योगोद्वहन सम्बन्धी विविध विधियाँ ...273 स्वाध्याय प्रस्थापना विधि
आगम सूत्रों का प्रारम्भिक अभ्यास एवं उनका अर्थ बोध करने के उद्देश्य से एक विशिष्ट प्रक्रिया द्वारा आभ्यन्तर एवं बाह्य वातावरण को तदनुकूल संयोजित करना स्वाध्याय प्रस्थापना कहलाता है। व्यवहार भाष्य के मतानुसार स्वाध्याय प्रस्थापना विधि इस प्रकार है-89
सर्वप्रथम कालग्राही, कालग्रहण करके गुरु के समीप पहुँचें। फिर ईर्यापथिक प्रतिक्रमण करें। फिर 'कालशुद्ध है' ऐसा निवेदन करें। उसके बाद स्वाध्याय की प्रस्थापना करें। स्वाध्याय प्रस्थापना करने के पश्चात कालग्राही मुनि वसति के बाहर काल का निरीक्षण करें, इसमें ग्राह्य एवं अग्राह्य काल का ध्यान रखें अर्थात किन्हीं दिशाओं में से विद्युत गर्जना, रोमांचकारी ध्वनियाँ, छींक आदि की आवाज तो नहीं आ रही है? यदि कालग्रहण करते समय भी छींक आदि किसी तरह का व्याघात हो जाये तो स्वाध्याय का नाश हो जाता है यानी आगमसूत्र की वाचना नहीं दी जा सकती है। तदर्थ कालग्राही को पुनः दिशावलोकन करना होता है। उस समय दंडधर मुनि स्वाध्याय प्रस्थापना के लिए वसति में प्रवेश करें एवं स्वाध्याय की प्रस्थापना करें। इस हेतु गुरु को वंदन भी करें।
फिर योगवाही साधुओं से पूछे- भंते! स्वाध्याय में व्यवधान उत्पन्न करने वाले तथ्यों के विषय में किसी ने क्या कुछ देखा या सुना है? तब सभी साधु जिसने व्यवधान कारक तथ्यों के सम्बन्ध में जो सुना या देखा है, वह सब कहें। यदि सभी कहें कि इस सम्बन्ध में कुछ भी न तो सुना है और न देखा है तब काल शुद्ध है, ऐसा समझना चाहिए। उसके पश्चात जिस आगम सूत्र का पाठ ग्रहण करना हो, उस विषयक अध्ययन प्रारम्भ करें।
खरतरगच्छाचार्य जिनप्रभसूरि ने स्वाध्याय प्रस्थापना की निम्न विधि प्रवेदित की है 90
वाचनाचार्य और योगवाही शिष्य स्थापनाचार्य के समक्ष उपस्थित होकर स्वाध्याय प्रस्थापना करें।
निवेदन- सर्वप्रथम मुखवस्त्रिका का प्रतिलेखन कर द्वादशावर्त वन्दन करें। फिर वाचनाचार्य एवं योगवाही मुनि दोनों एक खमासमण देकर बोलें'इच्छाकारेण संदिसह सज्झाउ संदिसावह'- आप अनुमति दीजिये कि हम स्वाध्याय प्रारम्भ करें। पुनः एक खमासमण देकर कहें- 'इच्छाकारेण संदिसह