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________________ योगोद्वहन सम्बन्धी विविध विधियाँ... 271 पात्रों में विधिपूर्वक लाया गया आहार आदि संघट्टा लिये हुए कृतयोगी के हाथ में अच्छी तरह प्रदान करें। • आधे बैठे में आहारादि देने या लेने पर संघट्टा चला जाता है। निद्रा लेते हुए एवं विकथा करते हुए आहार आदि ग्रहण करने पर संघट्टित पात्र आदि सभी वस्तुएँ असंघट्टित मानी जाती हैं। हुए की मुद्रा • निम्न स्थितियों में भी संघट्टित वस्तुएँ असंघट्टित हो जाती हैं यानी संघट्ट वस्तुओं का संघट्टा चला जाता है। 1. भूमि पर रखी गई वस्तु को ग्रहण करते समय । 2. संघट्टग्राही मुनि के शरीर का रजोहरण या मुखवस्त्रिका से स्पर्श नहीं होते समय। 3. गमन करते हुए या खड़े हुए मुनि द्वारा डंडे को बाएँ हाथ के अंगूठे एवं तर्जनी के बीच रखते समय । 4. गमन करते हुए या खड़े हुए मुनि द्वारा भुजाओं को दाएँ से बाएँ अथवा बाएँ से दाएँ ले जाते समय असंघट्ट होता है। यह स्थिर संघट्टा की विधि है। • पात्रादि सम्बन्धी स्थिर संघट्टा ग्रहण करने वाले मुनि यह ध्यान रखें कि नारियल एवं तुंबी के पात्रों के नीचे हाथीदाँत या सींग आदि के स्थापक लगे हु हों तो उन्हें संघट्टा हेतु ग्रहण न करें। · टूटे हुए पात्रों को जोड़ने में या तिरपनी को सांधने में लोहा, ताँबा, जस्ता, चाँदी, सोने के तार या कपड़े आदि का उपयोग न करें, क्योंकि कालिक सूत्रों के योग में लोहा आदि से सांधे हुए पात्र उपयोगी नहीं होते हैं । • कुछ आचार्यों के अभिमत से संघट्टग्राही (कालिक योगवाही) मुनि को तांबा, लोहा, हाथी दाँत, जस्ता आदि के पात्र से भिक्षा ग्रहण नहीं करनी चाहिए, अन्यथा संघट्टा चला जाता है। 88 • संघट्टा या आउत्तवाणय लेते हुए छींक आ जाये, अक्षर न्यूनाधिक बोला जाये, एक अक्षर दो बार कहा जाये, रजोहरण-मुखवस्त्रिका शरीर से विलग हो जाये, कोई व्यक्ति संघट्टाग्राही से स्पर्शित हो जाये अथवा संघट्टा ग्रहण करते समय स्थापनाचार्य और स्वयं के बीच में से पंचेन्द्रिय जीव आर-पार हो जाये तो संघट्ट सम्बन्धी सभी क्रिया निष्फल हो जाती है, तब दुबारा संघट्ट क्रिया करनी पड़ती है।
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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