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________________ योगोद्वहन सम्बन्धी विविध विधियाँ... 269 पर गृहीत वस्तु संघट्टित (संस्पर्शित) होने पर भी संघट्टित नहीं कहलाती है यानी पैरों को फैलाने से संघट्टा चला जाता है। यदि पैरों का संघट्टा नहीं लिया हो तो असंघट्टित दोनों पैरों को भीतर की तरफ करके पात्रादि का संघट्टा लेने पर भी गृहीत पात्रादि संघट्टित नहीं कहलाते हैं। अत: हाथ और पैरों का संघट्टा लेते समय पूर्ण सावधानी रखनी चाहिए | संघट्टा कृतयोगी मुनि द्वारा ही लिया जाना चाहिए, अकृतयोगी द्वारा लिया गया संघट्टा नहीं माना जाता है। आवश्यक, दशवैकालिक, उत्तराध्ययन, आचारांग, बृहत्कल्प, व्यवहार एवं दशाश्रुतस्कन्ध- इन सूत्रों का योग किया हुआ मुनि कृतयोगी कहलाता है। इससे न्यून सूत्रों का योगवाही मुनि अकृतयोगी कहलाता है। इस प्रकार उपयोग पूर्वक हाथ एवं पैरों का संघट्टा ग्रहण करने के पश्चात रजोहरण का संघट्टा ग्रहण करें। रजोहरण संघट्टा - रजोहरण संघट्टा की विधि निम्न है - दाएँ हाथ में रजोहरण की दण्डी को पकड़कर बाएँ हाथ से उसके दस्सियों से युक्त भाग को पकड़ें। फिर दाएँ हाथ की अंगुलियाँ और अंगुष्ठ को घुमाएं- यह प्रक्रिया तीन बार करें। पुनः दाएँ हाथ से रजोहरण को पकड़ें और बायें हाथ में चुल्लू भर पानी लेकर रजोहरण की दस्सियों के अग्रभाग को तीन बार प्रक्षालित करें। फिर बायें हाथ की हथेली को फैलाकर उसकी रजोहरण से तीन बार प्रमार्जना करें - यह प्रमार्जन क्रिया तीन-तीन बार कुल 3 x 3 = 9 बार करें। झोली संघट्टा - रजोहरण के पश्चात झोली का संघट्टा लें। यह विधि इस प्रकार है - झोली के चारों किनारों को मिलाकर दोनों हाथों के मध्य भाग में रखें, फिर तीन बार दक्षिणावर्त्त घुमाते हुए रजोहरण के ऊपर रखें, फिर तीन बार वामावर्त्त घुमाते हुए रजोहरण के ऊपर रखें- यह प्रक्रिया तीन बार करें। उसके बाद दो-दो किनारे मिलाकर झोली में दो गाँठ लगाएँ और बायें हाथ पर डालें। पात्र संघट्टा- सामान्यतया लकड़ी के पात्र, नारियल के पात्र, तुम्बी के पात्र, मिट्टी के पात्र, कटह (घड़े के ऊर्ध्वभाग को तोड़कर बनाया गया) पात्र एवं ढक्कन की प्रतिलेखना विधि पंचवस्तुक, यतिदिनचर्या आदि ग्रन्थों से जाननी चाहिए। पात्र आदि संघट्टा की विधि यह है - संघट्टित झोली के अन्दर जितने पात्र रखे जाते हैं वे सभी संघट्टित ही होते हैं। नारियल एवं तुम्बी पात्र का संघट्टा ग्रहण करने पर उन्हें दोनों पैरों के मध्य में रखें। डोरी संघट्टा - डोरी के गाँठ लगाकर उसे रजोहरण के ऊपर तीन-तीन
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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