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268... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण
भगवन्! आपकी इच्छापूर्वक संघट्टग्रहण की आज्ञा लेता हूँ। फिर एक खमासमण देकर कहें- इच्छा. संदि भगवन्! संघट्टं करेमि - हे भगवन्! आपकी इच्छापूवक संघट्टा ग्रहण करता हूँ। फिर संघट्टसंदिसावणत्थं करेमि काउस्सग्गं पूर्वक अन्नत्थसूत्र बोलकर एक नमस्कार मंत्र का कायोत्सर्ग करें। कायोत्सर्ग पूर्णकर प्रकट में नमस्कार मंत्र बोलें । भिक्षाचर्या से लौटकर पुनः ईर्यापथिक प्रतिक्रमण करें। फिर एक खमासमण देकर कहें- इच्छा. संदि. भगवन्! संघट्टं पडिक्कमामि - हे भगवन्! आपकी इच्छापूर्वक संघट्ट में लगे दोषों का प्रतिक्रमण करता हूँ। फिर एक खमासमण पूर्वक संघट्टस्स पडिक्कमणत्थं करेमि काउस्सग्गं पूर्वक अन्नत्थसूत्र बोलकर एक नमस्कार मन्त्र का कायोत्सर्ग करें। फिर प्रकट में नमस्कार मंत्र बोलें।
स्थिर संघट्टा - आचारदिनकर के मतानुसार हाथ, पाँव, रजोहरण, पात्र, डोरी, झोली आदि का स्थिर संघट्टा ग्रहण किया जाता है। इनकी विधियाँ निम्न हैं- 87
सर्वप्रथम संघट्टाग्राही मुनि ईर्यापथिक प्रतिक्रमण करें। फिर पात्र, झोली, डोरी आदि को अपने निकट रखकर स्वयं काष्ठासन या पादप्रोंछन पर दोनों घुटनों को खड़ा हु बैठें। फिर सबसे पहले हाथ का संघट्टा ग्रहण करें। मुखवस्त्रिका सहित रजोहरण की दस्सियों को अग्रभाग में स्थित करें और रजोहरण की दण्डी को गोद में दायीं तरफ स्थापित करें तथा दाएँ हाथ से उसका स्पर्श करें।
हाथ संघट्टा - हाथ संघट्टा की विधि यह है - रजोहरण की दस्सियों के ऊपर दोनों हाथों को संयुक्त कर एवं अधोमुख करके स्थापित करें। फिर हाथों की हथेलियों को आकाश की ओर फैलायें। इस तरह की प्रक्रिया तीन बार करें।
पांव संघट्टा- दोनों पैरों के तलियों को समान रूप से मिलाकर उनकी रजोहरण से तीन बार प्रमार्जना करें। फिर पाँवों को अलग-अलग कर दें। उसके बाद पुनः पाँवों के तलि भाग को मिलायें - इस तरह तीन बार करें। कुल तीन बार में नौ बार प्रमार्जना करें |
पैरों का संघट्टा लेने के पश्चात दोनों हाथों को दोनों घुटनों के बीच में रखें। दोनों हाथों को घुटनों के बाहर रखने पर संघट्टा चला जाता है। दोनों हाथ घुटनों से बाहर होने पर गृहीत वस्तु का संघट्टा होते हुए भी संघट्टा नहीं रहता है। इसी तरह दोनों पैरों को नीचे की तरफ फैलाने से और उन्हें पुनः नीचे की तरफ लेने