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264... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण
पडिक्कमुं? इच्छं । पुनः खमासमण देकर कहें- इच्छा. संदि. सज्झाय पडिक्कमावणि काउस्सग्ग करूं? इच्छं । फिर सज्झाय पडिक्कमावणि करेमि काउस्सग्गं पूर्वक अन्नत्थसूत्र बोलकर एक नमस्कार मन्त्र का कायोत्सर्ग करें। कायोत्सर्ग पूर्ण करके प्रकट में परमेष्ठी मन्त्र बोलें।
प्रथम पाटली हो तो एक खमासमण पूर्वक वंदन कर अविधि आशातना का मिथ्यादुष्कृत दें और एक नमस्कार गिनकर पाटली का उत्थापन करें। यदि दूसरी पाटली हो तो काल प्रतिक्रमण सम्बन्धी निम्न क्रिया भी करें
एक खमासमण देकर कहें- इच्छा. संदि. पाभाइकाल ( जिस काल की पाटली हो उसका नाम लेते हुए) पडिक्कमुं? इच्छं । पुनः एक खमासमण सूत्र से वन्दन कर कहें- इच्छा. संदि. पभाइकाल पडिक्कमावणि काउस्सग्ग करूं? इच्छं । फिर पभाइकाल पडिक्कमावणि करेमि काउस्सग्गं पूर्वक अन्नत्थसूत्र बोलकर एक नमस्कार मन्त्र का कायोत्सर्ग करें। कायोत्सर्ग पूर्ण करके प्रकट में नमस्कार मन्त्र बोलें। किसी तरह की अविधि या आशातना हुई हो, तो उसका मिथ्यादुष्कृत दें। तत्पश्चात एक नमस्कार मन्त्र का स्मरण कर पाटली का उत्थापन करें।
समीक्षा— कालमंडल या पाटली एक गूढार्थ एवं रहस्यात्मक प्रक्रिया है। कुछ आचार्यों ने इसे तान्त्रिक क्रिया के रूप में स्वीकार किया है। उनका यह मानना है कि इसका मर्म अतिप्राचीन काल से अज्ञात है । निःसन्देह इस अनुष्ठान के माध्यम से सम्पन्न की जाने वाली क्रियाएँ जैसे- पाटली का स्थापन करना, उस पर दो दंडियाँ रखना, दंडी को कटि भाग पर खौंसना, नाक एवं दोनों कानों का अंगूठों से स्पर्श करवाना, रजोहरण की दसियों द्वारा दंडी ग्रहण करना, हाथ आदि का बार-बार प्रमार्जन करना आदि क्रियाएँ समझने योग्य हैं।
यदि प्रस्तुत विषय में प्राक ऐतिहासिक दृष्टि से अध्ययन किया जाए तो इतना अवश्य ज्ञात होता है कि विक्रम की दूसरी शती से 16वीं शती पर्यन्त उपलब्ध साहित्य में इस विषयक स्पष्ट उल्लेख हैं । मध्यकालीन (विक्रम की 12वीं से 16वीं शती पर्यन्त) साहित्य में कालमंडल विधि का भी उल्लेख है। जैसे कि व्यवहारभाष्य (5वीं से 7वीं शती) में 'कालभूमि' शब्द का निर्देश है। 80 तिलकाचार्यसामाचारी (12वीं शती) में 'कालमंडल प्रतिलेखना' नाम की स्वतन्त्र