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योगोद्वहन सम्बन्धी विविध विधियाँ ... 263
गोलाकार या परिधियुक्त निर्धारित स्थान । जहाँ से शुद्ध-अशुद्ध काल का सम्यक ज्ञान किया जा सके, वह स्थान कालमंडल कहलाता है। कालग्रहण, क्रिया विशेष का सूचक है और कालमंडल - स्थान विशेष का वाचक है। यह विधि कालग्राही एवं दंडधर के द्वारा जैन मुनियों के उपाश्रय या उसके समीपवर्ती सुयोग्य वातावरण में सम्पन्न की जाती है। इसमें मुख्य रूप से पाटली स्थापन और तीन बार कालमंडल क्रिया करते हैं। जीत परम्परा के अनुसार कालमंडल की निम्न विधि कही गई है 79
पाटली स्थापन - सर्वप्रथम स्थापनाचार्य को खुला रखें। उसके आगे पाटली, मुखवस्त्रिका, दो दंडी और तगडी - इन वस्तुओं को अलग-अलग रखें। फिर मुखवस्त्रिका को पाटली के ऊपर रखें, दोनों दंडियों को बायीं और दायीं तरफ रखें तथा तगडी को पाटली स्थिर करने हेतु उपयोग में लें। फिर कालग्राही एक खमासमण देकर ईर्यापथिक प्रतिक्रमण करें। फिर रजोहरण से बायीं हथेली प्रमार्जित कर उस हाथ में पाटली लें और 25 बोल से उसकी प्रतिलेखना कर उसे भूमि पर रखें। फिर 25 बोल से मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना कर उसे पाटली पर रखें। फिर बायीं तरफ की दंडी की 10 बोल से प्रतिलेखना कर उसे मुखवस्त्रिका के ऊपर आड़ी रखें। फिर दायीं तरफ की दंडी उठाकर 10 बोल से प्रतिलेखना करें और उसे मुखवस्त्रिका पर उस तरह आडी रखें कि वह पहली दंडीधर को स्पर्श न कर सके।
फिर एक नमस्कार मन्त्र के स्मरण पूर्वक बैठे हुए और एक नमस्कार मन्त्र द्वारा खड़े होकर पाटली की स्थापना करें। यह पाटलीस्थापन की विधि है ।
कालमंडल प्रतिक्रमण - तदनन्तर कालमंडल करते समय लगे हुए दोषों की आलोचना करने के लिए एक खमासमण देकर कहें- इच्छा. संदि. कालमांडला पडिक्कमुं? इच्छं । पुनः एक खमासमण देकर कहें- इच्छा. संदि. कालमांडला पडिक्कमावणि काउस्सग्ग करूं? इच्छं । फिर कालमांडला पडिक्कमावणि करेमि काउस्सग्गं पूर्वक अन्नत्थसूत्र बोलकर एक नमस्कारमन्त्र का कायोत्सर्ग करें। कायोत्सर्ग पूर्ण करके प्रकट में परमेष्ठीमंत्र बोलें।
सज्झाय प्रतिक्रमण - तत्पश्चात स्वाध्याय करते समय लगे दोषों की आलोचना करने के लिए एक खमासमण देकर कहें- इच्छा. संदि. सज्झाय