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262... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण कालमंडल करें। प्रत्येक कालग्रहण के 49-49 मांडला करें। यदि एक कालग्रहण हो तो 49, दो कालग्रहण लेने हों तो 98 मांडला करें। फिर पुन: पाटली रखने योग्य भूमि का प्रमार्जन करें। फिर दंडासन रखते समय दांडीधर कहे'दिशावलोक होय छे?'। कालग्राही दंडासन नीचे रखते हए कहे- 'होय छे'।
दांडीधर- रजोहरण द्वारा उस भूमि को प्रमार्जित कर पाटली को स्थित करें। मुखवस्त्रिका से बायां हाथ और तगड़ी दोनों की तीन बार युगपद प्रतिलेखना कर तगड़ी को पाटली के ऊपर रखें। पाटली हिलती हो तो उस स्थान को प्रमार्जित कर तगड़ी रखें। फिर दांडीधर बैठे हुए एवं खड़े हुए एकएक नमस्कार मन्त्र पूर्वक और कालग्राही खड़े हुए एक नमस्कार मन्त्र के स्मरण पूर्वक पाटली की स्थापना करें।
दांडीधर- फिर दांडीधर एक खमासमण देकर कहे- इच्छा. संदि. वसहि पवे? कालग्राही- पवेयह। दांडीधर- 'इच्छं' कहकर खमासमण देकर बोले- सुद्धावसहि। कालग्राही तहत्ति कहे। फिर कालग्राही और दांडीधर दोनों एक खमासमण देकर अविधि आशातना का मिच्छामि दुक्कडं दें। फिर दायें हाथ को अपने सन्मुख करके एक नमस्कार मन्त्र के स्मरण पूर्वक पाटली का उत्थापन करें।
समीक्षा- यह विधि वर्तमान की संकलित कृतियों में उपलब्ध है। इस विषयक कुछ अंश विधिमार्गप्रपा एवं आचारदिनकर आदि में भी मौजूद हैं। यद्यपि वर्तमान परम्परा में जो स्वरूप प्राप्त है वह परवर्ती ग्रन्थों में ही दिखायी देता है। इस विधि के अन्तर्गत पाटली, तगडी, दंडी आदि शब्दों का प्रयोग संभवतः विक्रम की 18वीं-19वीं शती से अस्तित्व में आये हैं। विक्रम की 15वीं शती तक के ग्रन्थों में इन शब्दों का व्यवहार नहीं देखा जाता है। कुछ आचार्यों के मत से यह अध्यात्म तन्त्र की क्रिया है।
वस्तुत: यह विधि तपागच्छ परम्परा में सर्वाधिक रूप से प्रचलित है तथा सामुदायिक समाचारियों में भेद होने के कारण उनमें इस विधि को लेकर सामान्य अन्तर भी रहे हुए हैं।78 कालमंडल (पाटली) विधि
जिस स्थान विशेष या भू-क्षेत्र पर स्थित होकर कालग्रहण किया जाता है उसे कालमंडल कहते हैं। काल अर्थात समय विशेष का ज्ञान, मंडल अर्थात