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योगोद्वहन सम्बन्धी विविध विधियाँ ...261 जीतव्यवहार की मान्यतानुसार नोंतरा विधि निम्न है
सर्वप्रथम पश्चिम दिशा की तरफ स्थापनाचार्य खुला रखें। फिर वसति के चारों ओर सौ हाथ पर्यन्त भूमिशोधन करें। कालग्राही ईर्यापथ प्रतिक्रमण करें। फिर दंडासन की 10 बोल से प्रतिलेखना कर भूमि प्रमार्जना करें और काजा लें। ___ दांडीधर- स्थापनाचार्य के समक्ष पाटली के ऊपर मुखवस्त्रिका और उसके ऊपर दो दंडी की स्थापना करें। दांडीधर कालग्राही की बायीं ओर खड़ा रहे। ____ कालग्राही- स्थापित पाटली के निकट से काजा लेते हुए कालमंडल भूमि में पाटली के सन्मुख खड़ा रहे। फिर 'नासिका चिंतवणी सावधान, उपयोग राखो' इस पद को उच्च स्वर से बोलते हुए और पुनः प्रमार्जना करते हुए स्थापनाचार्य के सम्मुख आकर दंडासन को रख दें।
दांडीधर- उस समय दांडीधर रजोहरण द्वारा भूमि की प्रमार्जना करें। फिर नीचे बैठकर पाटली आदि उपकरणों को अलग-अलग रखें। फिर कालग्राही और दांडीधर एक खमासमण देकर ईर्यापथिक प्रतिक्रमण करें। प्रतिक्रमण के सूत्रपाठ दांडीधर बोले। ___ दांडीघर- एक खमासमण देकर कहे- इच्छा. संदि. भगवन्! वसहि पवेउं? कालग्राही- पवेयह। दांडीधर 'इच्छं' कहे। पुन: एक खमासमण देकर बोलें- भगवन्! सुद्धा वसहि। कालग्राही तहत्ति कहें। फिर कालग्राही और दांडीधर दोनों एक खमासमण देकर बोलें- इच्छा. संदि. भगवन् पच्चक्खाण कर्यु छ जी। __ फिर एक खमासमण देकर कहें- इच्छा. संदि. भगवन्! स्थंडिल पडिलेहशं? गुरु- पडिलेहेह। दांडीधर 'इच्छं' कहें। तत्पश्चात नीचे बैठकर पाटली की 25 बोलपूर्वक प्रतिलेखना करें। फिर मुखवस्त्रिका की 25 बोलपूर्वक प्रतिलेखना कर उसे पाटली के ऊपर रखें। दोनों दंडियों की 10-10 बोलपूर्वक प्रतिलेखना कर मुखवस्त्रिका के ऊपर पृथक-पृथक रखें। तगडी (ठेसी) की चार बोलपूर्वक प्रतिलेखना कर उसे मुखवस्त्रिका पर रखें। तदनन्तर दांडीधर दायें हाथ में रजोहरण एवं मुखवस्त्रिका और बांये हाथ में दंडी सहित पाटली को लेकर खड़ा हो जाए। ___कालग्राही- उसके बाद कालग्राही 10 बोल द्वारा दंडासन की प्रतिलेखना कर पाटली स्थान की प्रमार्जना करें। दांडीधर वहाँ खड़ा रहे। फिर कालग्राही