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________________ 260... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण हैं। कुछ परम्पराओं में नोंतरा देने के बाद ही सभी साधुजन स्थंडिल मांडला करते हैं। यदि नोंतरा निष्फल जाता है तो सामान्यतः दूसरी बार नहीं दिया जाता। केवल आचार्य आदि पदस्थापना जैसे विशिष्ट अवसरों पर यह विधि पुनः की जा सकती है। जो कालग्रहण जिस दिशा की ओर मुख करके लिया जाता है तत्सम्बन्धी नोंतरा विधि भी उसी दिशा की ओर मुख करके की जाती है । जैसे प्राभातिक एवं वैरात्रिक कालग्रहण पश्चिम दिशा की ओर मुख करके और व्याघातिक एवं अर्द्धरात्रिक कालग्रहण दक्षिण दिशा की ओर मुख करके लिए जाते हैं। इस नियम के अनुसार प्राभातिक और वैरात्रिक कालसम्बन्धी नोंतरा पश्चिम दिशा में तथा व्याघातिक और अर्द्धरात्रिक काल सम्बन्धी नोंतरा दक्षिण दिशा में दिये जाते हैं। यदि तीन या चार बार नोंतरा विधि करनी हो, तब पहले व्याघातिक और अर्धरात्रिक नोंतरा विधि दक्षिण दिशा की तरफ करें। उसके बाद वैरात्रिक और प्राभातिक नोंतरा पश्चिम दिशा की तरफ करें। प्रवेश के पहले दिन एक कालग्रहण लिया जाता है तथा अंगसूत्र या श्रुतस्कन्ध के समुद्देश और अनुज्ञा दिन में प्राभातिक कालग्रहण ही लिया जाता है। इस नियम से इन दिनों में एक बार ही नोंतरा विधि होती है । प्रथम व्याघातिक और अर्द्धरात्रिक काल सम्बन्धी नोंतरा विधि में जिस कालग्राही के द्वारा प्रत्याख्यान एवं स्थंडिल प्रतिलेखन के आदेश लिए गए हों और वही कालग्राही दांडीधर भी हो तो वैरात्रिक और प्राभातिक सम्बन्धी नोंतरा विधि में पुनः से प्रत्याख्यान एवं स्थंडिल प्रतिलेखना के आदेश लेने की आवश्यकता नहीं है। यदि कालग्राही और दांडीधर पृथक-पृथक हों तो दोनों नोंतरा विधि में उक्त आदेश दोनों बार लेने चाहिए। मांडला - दक्षिण, उत्तर, पश्चिम और पूर्व इस क्रम से प्रत्येक दिशा में सात-सात कुल 4×7=28 मंडल किए जाते हैं। एक कालग्रहण में एक बार, दूसरे कालग्रहण में दो बार मांडला किए जाते हैं, किन्तु एक के बाद कुछ समय का अन्तराल रखकर, दूसरी बार के मांडले करने चाहिए । आचार्य रामचन्द्रसूरि आदि कुछ समुदायों में चारों दिशाओं में 17-17 गाथाएँ बोली जाती हैं तथा एक कालग्रहण में 27 मंडल एक ही दिशा में होते हैं। नोंतरा विधि की क्रिया कालग्राही और दांडीधर मुनि ही करते हैं। सामान्य योगवाही मुनि इस क्रिया के अधिकारी नहीं माने गये हैं।
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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