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________________ योगोद्वहन सम्बन्धी विविध विधियाँ ...257 कालग्रहण प्रतिक्रमण तत्पश्चात कालग्रहण लेते समय लगे हुए दोषों से निवृत्त होने के लिए पूर्ववत दो खमासमण देकर काल का प्रतिक्रमण करें पाभाइकालु पडिक्कमिसहं- प्राभातिक काल का प्रतिक्रमण करते हैं अथवा जिस काल का प्रतिक्रमण करना हो उसका नाम उच्चारित करें। पाभाइयकाल पडिक्कमणत्थु काउस्सग्गु करिसहं- प्राभातिक काल का प्रतिक्रमण करने के लिए कायोत्सर्ग करते हैं। उसके पश्चात गुरु को द्वादशावर्त्तवन्दन करके तप का प्रत्याख्यान करें। गुरु योगवाहियों के तप की सुखपृच्छा करें। संघट्टा ग्रहण तदनन्तर भिक्षाचर्या के निमित्त प्रवेदन काल के अनन्तर ही संघट्टा ग्रहण करने की अनुमति प्राप्त करें। सर्वप्रथम मुखवस्त्रिका का प्रतिलेखन करें। फिर पूर्ववत तीन खमासमण देकर संघट्टा ग्रहण के तीन आदेश लें संघट्टर संदिसावउं- संघट्टा ग्रहण करने के लिए आपकी अनुमति लेता हूँ। संघट्टउ पडिगाहउं- आपकी अनुमति पूर्वक संघट्टा ग्रहण करता हूँ। संघट्टा पडिगाहणत्यु काउस्सग्गु करउं- संघट्टा ग्रहण करने के लिए कायोत्सर्ग करता हूँ- संघट्टापडिगाहणत्यं करेमि काउस्सग्गं पूर्वक अन्नत्थसूत्र बोलकर एक नमस्कार मन्त्र का कायोत्सर्ग करें, कायोत्सर्ग पूर्णकर प्रकट में नमस्कार मन्त्र बोलें। फिर अविधि या आशातना हुई हो तो उसका मिथ्यादुष्कृत दें। आउत्तवाणय ग्रहण तदनन्तर आउत्तवाणय ग्रहण करना हो तो पूर्ववत मुखवस्त्रिका का प्रतिलेखन करें और तीन खमासमण देकर तीन आदेश लें आउत्तवाणय संदिसावउं- आउत्तवाणय ग्रहण करने के लिए आपकी अनुज्ञा लेता हूँ। आउत्तवाणय पडिगाहउं- आपकी अनुज्ञा पूर्वक आउत्तवाणय ग्रहण करता हूँ। आउत्तवाणय पडिगाहणत्यु काउस्सग्गु करउं- आउत्तवाणय ग्रहण
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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